नई दिल्ली: विपश्यना अन्तर्मन की एक यात्रा है. ये अपने भीतर गहरे गोते लगाने का रास्ता है. लेकिन ये केवल एक विधा नहीं है, ये एक विज्ञान भी है. इस विज्ञान के परिणामों से हम परिचित हैं. अब समय की मांग है कि हम इसके प्रमाणों को आधुनिक मानकों पर, आधुनिक विज्ञान की भाषा में प्रस्तुत करें.” प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आचार्य एसएन गोयनका की 100वीं जयंती के तहत वर्ष भर चले कार्यक्रमों के समापन समारोह पर वीडियो संदेश में यह बात कही. उन्होंने कहा कि आज हम सबको गर्व होता है कि इस दिशा में विश्व भर में काम भी हो रहा है. लेकिन, इसमें भारत को और आगे आना होगा. हमें इसमें लीड लेनी होगी. क्योंकि, हमारे पास इसकी विरासत भी है, और आधुनिक विज्ञान का बोध भी है. नई रिसर्च से इसकी स्वीकार्यता बढ़ेगी, विश्व का और अधिक कल्याण होगा. प्रधानमंत्री ने कहा कि गुरुजी भगवान बुद्ध का मंत्र दोहराया करते थे- समग्गा-नम् तपो सुखो यानी जब लोग एक साथ मिलकर ध्यान लगाते हैं तो उसका बहुत ही प्रभावी परिणाम निकलता है. एकजुटता की ये भावना, एकता की ये शक्ति, विकसित भारत का बहुत बड़ा आधार है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि विपश्यना, पूरे विश्व को प्राचीन भारतीय जीवन पद्धति की अद्भुत देन है, लेकिन हमारी इस विरासत को भुला दिया गया था. भारत का एक लंबा कालखंड ऐसा रहा, जिसमें विपश्यना सीखने-सिखाने की कला जैसे धीरे धीरे लुप्त होती जा रही थी. विपश्यना सेल्फ आब्जर्वेशन के माध्यम से सेल्फ ट्रांसफार्मेशन का मार्ग है. इसका महत्त्व तब भी था जब हजारों वर्ष पूर्व इसका जन्म हुआ, और आज के जीवन में ये और भी प्रासंगिक हो गई है. आज दुनिया जिस तरह की चुनौतियों से घिरी हुई है, उसका समाधान करने की बड़ी शक्ति विपश्यना में भी समाहित है. आचार्य गोयनका के प्रयासों की वजह से दुनिया के 80 से ज्यादा देशों ने ध्यान के महत्त्व को समझा है और इसे अपनाया है. उन्होंने विपश्यना को फिर से एक वैश्विक पहचान दी. आज भारत उस संकल्प को पूरी मजबूती से नया विस्तार दे रहा है. हमने यूनाइटेड नेशंस में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव रखा था. उसे 190 से ज्यादा देशों का समर्थन मिला. योग अब वैश्विक स्तर पर जीवन का हिस्सा बन गया है. हमारे पूर्वजों ने विपश्यना जैसी योग प्रक्रियाओं का अनुसंधान किया. लेकिन हमारे देश की ये विडम्बना रही है कि अगली पीढ़ियों ने उसके महत्त्व को, उसके उपयोग को भुला दिया. विपश्यना, ध्यान, धारणा, इन्हें हमने केवल वैराग्य का विषय मान लिया. व्यवहार में इनकी भूमिका लोग भूल गए. आचार्य जी कहते थे- एक स्वस्थ्य जीवन, हम सभी का अपने प्रति बहुत बड़ा दायित्व है. आज विपश्यना व्यवहार से लेकर व्यक्तित्व निर्माण तक के लिए एक प्रभावी माध्यम बनी है. आज आधुनिक समय की चुनौतियों ने विपश्यना की भूमिका को और भी बढ़ा दिया है.