वाराणसी: काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के पूर्व विभागाध्यक्ष और जानेमाने आलोचक प्रोफेसर चौथीराम यादव का निधन हो गया है. प्रो चौथीराम के निधन से हिंदी साहित्य में आलोचना और प्रतिरोध का एक स्वर और खामोश हो गया. खास बात यह कि अभी भारतीय भाषा के बड़े कवि सुरजीत पातर के निधन पर यादव ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा था, “पंजाबी की विद्रोही कविता के जन्मदाताप्रिय कवि सुरजीत पातर अब हमारे बीच नहीं रहे. अलविदा साथी! आखिरी जोहार!” और चौबीस घंटे भी नहीं बीते कि यादव चल बसे. इसके अलावा कुछ महाविद्यालयों में भी उन्हें याद किया गया. जौनपुर जिले के शाहगंज तहसील के कायमगंज गांव निवासी प्रो चौथीराम वर्ष 2003 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय सेवानिवृत्त हुए थे. पिछले वर्ष ही उन्हें कबीर राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा गया था. वे प्रगतिशील आलोचक एवं प्रलेस के संरक्षक भी रहे थे. काशी के साहित्यकारों ने उन्हें हिंदी का जन बुद्धिजीवी बताते हुए उनके निधन को हिंदी आलोचना के एक युग का अवसान करार दिया है.  प्रो चौथीराम यादव के निधन पर प्रलेस के महासचिव भरत शर्मा की अध्यक्षता में शोक सभा का आयोजित हुईजिसमें कलीमुल हकमहेश अश्कवीरेंद्र मिश्र दीपकधर्मेंद्र त्रिपाठी और निखिल पांडे प्रमुख रूप से उपस्थित रहे. इप्टा की प्रदेश इकाई के महासचिव शहजाद रिजवी ने भी यादव के निधन पर दुख व्यक्त किया है.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के उनके सहयोगी रहे हिंदी साहित्यकारों डा काशीनाथ सिंहडा चंद्रकला त्रिपाठीडा श्रीप्रकाश शुक्ल ने भी उन्हें याद किया. उधर सुल्तानपुर के राणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिंदी विभाग में भी एक बैठक हुईजिसमें प्रो चौथीराम यादव को श्रद्धांजलि दी गई. विभागाध्यक्ष डा इन्द्रमणि कुमार ने बताया कि चौथीराम तिरासी साल की उम्र में भी काफी सक्रिय थे. एसोसिएट प्रोफेसर डा रंजना पटेल ने कहा कि उनकी आलोचना दृष्टि काफी पैनी थी. डा विभा सिंह ने बताया कि जौनपुर जिले के कायमगंज निवासी प्रोफेसर प्रो यादव अपनी जमीन से हमेशा जुड़े रहे. असिस्टेंट प्रोफेसर ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह रवि ने कहा कि प्रोफेसर यादव सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से आलोचना करने वाले हिंदी के अनोखे रचनाकार थे. सहज व्यक्तित्व के धनी इस शख्स का जाना साहित्य जगत की बड़ी क्षति है. उन्होंने कहा कि उम्र के इस पड़ाव पर भी वे साहित्य और समाज में सक्रिय रूप से भागीदारी करते रहे जो अनेक लोगों के लिए प्रेरणादायक है. महाविद्यालय के शिक्षकों के साथ विद्यार्थियों ने भी दो मिनट का मौन रखकर प्रोफेसर यादव को श्रद्धांजलि दी.