पुट्टपर्थी: “प्रशान्ति का अर्थ होता है प्रकृष्ट शांति, अर्थात गहरी आध्यात्मिक शांति. ऐसी आध्यात्मिक शांति की परंपरा से युक्त स्थान होने के कारण इस क्षेत्र को प्रशान्ति निलयम कहना सर्वथा सार्थक है. हमारे यहां यह मान्यता है कि जिस क्षेत्र में महान विभूतियां सक्रिय रहती हैं, वह स्थान सदा के लिए आध्यात्मिक पवित्रता, शांति और ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाता है.” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी में श्री सत्य साईं इंस्टीट्यूट आफ हायर लर्निंग के 42वें दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे. आपके विश्वविद्यालय का ध्येय वाक्य है ‘सत्यं वद धर्मं चर‘ अर्थात सदा सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो. सदा सच बोलने के इस उपदेश में, मन, कर्म और वचन से सत्य के प्रति निष्ठा का संदेश दिया गया है. सत्य की निरंतर खोज करने और उस पर अडिग रहने के आदर्श को हमारी संस्कृति में प्राथमिकता दी गई है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आत्मकथा का शीर्षक है ‘सत्य के प्रयोग‘. वे कहा करते थे कि सत्य का अन्वेषण करना ही उनके जीवन का प्रमुख लक्ष्य था एवं समाज सेवा तथा राजनीतिक गतिविधियां सत्य के उस प्रमुख लक्ष्य को प्राप्त करने के नैतिकता-पूर्ण माध्यम थे. विद्या वही है जो मुक्ति प्रदान करती है. अज्ञान, अहंकार, क्रोध, लोभ, मोह और ईर्ष्या सहित हर प्रकार के विकारों से मुक्ति ही विद्या का वास्तविक परिणाम है. जो सही अर्थों में विद्यावान होता है वह विनयशील होता है, परोपकारी होता है और संवेदनशील होता है.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि सत्य की इसी महिमा के कारण श्री सत्य साई बाबा जिनके प्रति अगाध श्रद्धा के साथ हम सब यहां उपस्थित हुए हैं, उनके पवित्र नाम में भी ‘सत्य‘ का समावेश है. ‘धर्मं चर‘, इस वाक्यांश में धर्म का अर्थ कोई विशेष पंथ नहीं है. यहां धर्म का अभिप्राय उन मूलभूत नैतिक मूल्यों से है जिनके आधार पर सम्पूर्ण मानव समाज का कल्याण होता है. जीवन-मूल्यों और नैतिकता की शिक्षा देना ही वास्तविक शिक्षा है. जिस तरह भवन के निर्माण के लिए मजबूत नींव जरूरी है उसी तरह जीवन के निर्माण के लिए नैतिकता और जीवन-मूल्यों की आधारशिला भी अनिवार्य है. सत्य, सदाचरण, शांति, स्नेह और अहिंसा के जीवन-मूल्यों को प्रत्येक विद्यार्थी के जीवन में संचारित करने का प्रयास, आंतरिक शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य होता है. भारतीय परंपरा में एक महत्वपूर्ण कथन है ‘सा विद्या या विमुक्तये‘ अर्थात वास्तव में इसलिए, यह उच्च शिक्षण संस्थान सही अर्थों में विद्या-मंदिर है, आधुनिक गुरुकुल है. भारतीय समाज और आध्यात्मिक परंपरा में महिलाओं तथा शक्ति की अवधारणा को विशेष स्थान और सम्मान दिया गया है. प्राचीन काल में गार्गी, मैत्रेयी, अपाला, रोमशा और लोपामुद्रा से लेकर भारतीय संविधान के निर्माण में अमूल्य योगदान देने वाली हमारी संविधान सभा की 15 सदस्याओं तक विदुषी महिलाओं को अग्रणी स्थान देने की हमारी परंपरा रही है.