नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी के प्रतिष्ठित ‘प्रवासी मंच‘ कार्यक्रम में कनाडा से पधारी हिंदी साहित्यकार शैलजा सक्सेना ने अपनी रचनाओं का पाठ किया. उन्होंने पहले अपनी कविताएं सुनाईं और उसके बाद अपनी कहानी लेबनान की एक रात का एक अंश प्रस्तुत किया. उन्होंने अपने खंड काव्य भीष्म के भी कुछ अंश प्रस्तुत किए. उनकी कविताओं के शीर्षक थे, ‘कनाडा में सुबह‘, ख़ुशफ़हमियां, मैं कहीं भी रहूं, विदेश में रहती हैं, पेड़ यह और इंद्रधनुष. उन्होंने अपनी कविताओं का समापन मां पर लिखी एक कविता से किया. इन सभी कविताओं में जहां प्रवासी जीवन के संघर्ष थे, वहीं एक स्त्री होने के नाते इन संघर्षों की संवेदना का स्तर भी अलग था. रचना-पाठ के बाद उन्होंने उपस्थित श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर भी दिए.
एक प्रश्न के उत्तर सक्सेना ने बताया कि कोविड के बाद आनलाइन प्लेटफार्म पर कार्यक्रमों और संवाद की बढ़ोत्तरी के कारण एक दूसरे को समझने के नए आयाम खुले हैं. उन्होंने नाटकों और अन्य विषयों के लेखन और प्रस्तुति की बढ़ोत्तरी की ओर इशारा करते बताया कि अब प्रवासी रचना-संसार भी कहानी, कविताओं के अलावा नई-नई विधाओं में पंख पसार रहा है. प्रवासी एवं भारतीय साहित्य की दूरियां भी अब कम हुई हैं. कार्यक्रम में प्रवासी रचना-संसार से जुड़े कई महत्त्त्वपूर्ण लोग यथा सुरेश ऋतुपर्ण, अनिल जोशी, राकेश पांडेय, नारायण सिंह, अलका सिन्हा, रेखा सेठी, मधुरिमा, वीरेंद्र मिश्र आदि उपस्थित थे. कार्यक्रम के आरंभ में शैलजा सक्सेना का स्वागत अंगवस्त्रम एवं साहित्य अकादेमी के प्रकाशन भेंट कर किया गया.