उन्नाव: “आजादी की लड़ाई में भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश के साहित्यकारों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. आज भी आल्हा-ऊदल की लड़ाई को आल्हा गायन के रूप में लोग याद करते हैं. इसलिए विलुप्त हो रही इस प्राचीन लोकगीत शैली, लोक कला और लोक साहित्य को प्रोत्साहन देखकर संजीवनी प्रदान करने की आवश्यकता है.” उत्तर प्रदेश के पूर्व उप-मुख्यमंत्री डा दिनेश शर्मा ने यह बात आल्हा गायक एवं कलाकार लल्लू वाजपेयी की स्मृति में आयोजित एक समारोह में कही. उन्होंने कहा कि उन्नाव की धरती वीरभूमि कही जाती है. यहां के कई लोगों ने आजादी की लड़ाई में अपनी कुर्बानी दी थी. साहित्य के क्षेत्र में इस भूमि ने प्रताप नारायण मिश्र, गया प्रसाद शुक्ल जैसे रत्नों को जन्म दिया. रमई काका का हास्य सुनने के लिए अपार जनसमूह एकत्र होता था. इसी कड़ी में लल्लू वाजपेयी का आल्हा इतना मशहूर था कि शुरू-शुरू में रामानंद सागर की रामायण देखने के लिए जितने लोग इकट्ठा होते थे. उससे कई गुना अधिक लोग उन्नाव, कानपुर, लखनऊ और आसपास के क्षेत्र में उनका आल्हा सुनने के लिए आते थे.
डा शर्मा ने वाजपेयी के आल्हा गायन को निराला बताते हुए कहा कि आल्हा गायन के दौरान जोशीले प्रसंगों पर उनका हाथ बार-बार या तो अपनी लम्बी मूछों पर जाता था या कमर में लटकी तलवार पर. उनके प्रस्तुति को देखने के लिए एक बड़ा हुजूम जुटता था. उन्होंने कहा कि आज उन्नाव की इस वीरभूमि पर उपस्थित जन समुदाय एक ऐसे महान कलाकार और लोक गायक का स्मरण करने के लिए इकट्ठा हुआ है, जिसका साहित्यिक क्षेत्र में तो योगदान था किंतु जिसकी रचना का एक-एक वाक्य और उसे व्यक्त करने का अंदाज सामान्य परंपरा से अलग था. शर्मा ने कहा कि यह कहना अनुपयुक्त न होगा कि उन्नाव साहित्यकारों एवं आजादी के दीवानों की जन्मस्थली एवं कर्मस्थली है. कार्यक्रम में जिला पंचायत अध्यक्ष शकुन सिंह, जिला सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष मदन मिश्रा, आल्हा कार्यक्रम के संयोजक अतुल दीक्षित, अवनींद्र सिंह, राहुल सिंह, सुरेश मिश्रा, सुनील शुक्ल एवं युवा भाजपा नेता शशांक सिंह सहित बड़ी संख्या में स्थानीय नागरिक और आल्हा प्रेमी उपस्थित थे.