नई दिल्ली: वरिष्ठ सांसद और रेल, नागरिक उड्डयन और उद्योग जैसे महकमों को संभाल चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने मीडिया और कारपोरेट जगत के चर्चित चेहरे आशीष कौल की पुस्तक ‘1967- कश्मीर का परमेश्वरी आंदोलन‘ का विमोचन किया. यह पुस्तक एक गुमशुदा कश्मीरी पंडित बेटी की तलाश और उसे वापस उसकी मां तक पहुंचाने के लिए कश्मीरी पंडितों द्वारा किए गए ऐतिहासिक जन-जागरण आंदोलन का ज़िंदा दस्तावेज़ है. आशीष कौल के मुताबिक एक आंदोलन जो कश्मीर में एक कश्मीरी पंडित बेटी के गुमने से चालू हुआ और जिसके ख़त्म होते ही जैसे घाटी की फ़िज़ा में बारूद मिलनी शुरू हो गई. एक ऐसा आंदोलन जिसने कश्मीरी पंडितों का पौरुष भी देखा और देश के प्रति उसकी प्रतिबद्धता भी. लेखक का दावा है कि 1990 में कश्मीरी पंडितों के जीवन में जो अमावस आई उसका कृष्ण पक्ष इस आंदोलन के खात्मे के साथ ही शुरू हुआ था. ‘1967 कश्मीर का परमेश्वरी आंदोलन‘ के परिचय को कौल इस एक पंक्ति में समेटने की कोशिश करते हैं कि ‘ये महज एक कहानी नहीं है बल्कि समय के उस करवट की दास्तां है, जिसके बाद घाटी में घृणा और अलगाव का बारूद जमा होता चला गया.‘
पुस्तक का आमुख जाने-माने साहित्यकार व शिक्षाविद डाक्टर सच्चिदानंद जोशी ने लिखा है. आवरण पृष्ठ चित्रकार नरेंद्र पाल सिंह द्वारा बनाया गया है. डा जोशी का मानना है, “अब जब कश्मीरी पंडितों के घाटी में लौटने की राह बन रही है, ऐसे समय में इस किताब का आना सामयिक है. इस किताब को, घटनाओं को समझते हुए पढ़ा जाए तो हर भारतीय देख पाएगा कि इतिहास में चूक कहां हुई? इस किताब की सबसे खूबसूरत बात यह है कि इसने पूरे देश को यह संदेश दिया कि अगर आप मुट्ठी भर भी हैं, तब भी अगर आप एक हैं तो आप बड़े से बड़े पहाड़ को हटाने का दम रखते हैं और आपकी उस एकता के आगे सब झुकते हैं. निश्चय ही यह संदेश आज और हमेशा हर एक भारतीय को गांठ बांधकर रख लेना चाहिए, ताकि चंद अलगाववादी या चरमपंथी हममें आपस में दरार पैदा न कर पाएं.” दरअसल श्रीनगर के रैनावारी में 1967 में एक शाम, एक लड़की अचानक गायब हो गई. न कोई धमकी भरा फोन आया, न कोई शिकायतों भरा खत. आई तो सिर्फ एक खबर की वह है तो सही, पर लौटेगी नहीं. फिर तो ‘हमारी बेटी वापस करो‘ के नारों से कश्मीर गूंज उठा. बाद की कहानी में लिपटा दुख, आक्रोश, साहस, सियासत, धोखा और साजिश ही इस पुस्तक को खास बनाती है. प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 183 पृष्ठ की यह पुस्तक प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित की है.