नई दिल्लीः साहित्य अकादेमी के साहित्य मंच कार्यक्रम में प्रख्यात हिंदी कथाकार एवं नाटककार सुरेंद्र वर्मा ने अपने नए नाटक ‘दाराशिकोह की आख़िरी रात’ के कुछ अंशों का पाठ किया. सुरेंद्र वर्मा के 5 उपन्यास और 11 नाटक प्रकाशित हैं. साहित्य अकादमी, संगीत नाटक अकादमी, कालीदास एवं व्यास सम्मान प्राप्त सुरेंद्र वर्मा का पहला नाटक ‘सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक’ छह भाषाओं में अनूदित हो चुका है और इसका पहला प्रदर्शन अमोल पालेकर के निर्देशन में मराठी में 1972 में हुआ था. इसी पर ‘अनाहत’ फिल्म भी केंद्रित है. उनके उपन्यास ‘मुझे चाँद चाहिए’ को 1996 में साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था. इस पर भी एक धारावाहिक का निर्माण किया गया था.
सुरेंद्र वर्मा के नाटक गहन शोध और रोचक भाषा शैली के श्रेष्ठ उदाहरण रहे हैं. यह नाटक ‘दाराशिकोह की आख़िरी रात’ औरंगज़ेब और दारा शिकोह की विचाराधाराओं के टकराव और उनके लिए गढ़े गए तर्कों की गहरी जांच पड़ताल करता है. तीन अंकीय इस नाटक के चर्चित पात्र हैं- दारा शिकोह, औरंगजेब, शाहजहां, जहां आरा, रौशन आरा, जेबुन्निसा. इन्हीं के आपसी संवाद में नाटक को प्रस्तुत किया गया है. नाटक के अंतिम अंश में दारा को फांसी देते समय औरंगजेब की आवाज गूंजती है- शरीयत कानून वा दीन को दारा से कई तरह के ख़तरे थे इसलिए बादशाह सलामत पाक कानून को बचाने की ज़रूरत और सल्तनतो निजाम की वजूहात से इस नतीजे तक पहुंचे कि दारा के और ज़िंदा रहने से अमन को ख़तरा है. इसके बाद दारा का एक बेहद मार्मिक संवाद था, तुम्हारे और मेरे बीच सिर्फ मैं हूं, मुझे हटा लो ताकि सिर्फ़ तुम रहो.