“बनाया है मैंने यह घर धीरे-धीरे
खुले मेरे ख्वाबों के पर धीरे-धीरे
किसी को गिराया ना खुद को उछाला
कटा जिंदगी का सफर धीरे-धीरे… रामदरश मिश्र की इस मशहूर गजल की याद दिलाते हुए गुजराती के लेखक डा रघुवीर चौधरी ने कहा कि बिना किसी प्रतिस्पर्धा के ही ऐसा लेखक हो सकता है जो कि धीरे-धीरे अपनी राह पर चला हो और समाज की भरपूर स्वीकृति पाई हो. ऐसा कोई लेखक हमारे बीच है तो वह डा राम दरश मिश्र हैं जिनकी रचनाओं ने व्यापक पाठक संसार को अपनी ओर आकृष्ट किया है.” यह बात गुजराती के वरिष्ठ साहित्यकार ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता लेखक डा रघुवीर चौधरी ने कही. वे अहमदाबाद के चीनू भाई सभागार में साहित्य परिवार की ओर से एचके आर्ट्स कालेज और जीएलएस गर्ल्स कालेज के संयुक्त सहकार में डा रामदरश मिश्र की जन्म-शताब्दी पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में अध्यक्ष पद से बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि यह डा मिश्र की लोकप्रियता ही थी कि उनके पहले कविता संग्रह ‘बेरंग बेनाम चिट्ठियां‘ का प्रकाशन गुजरात से हुआ. डा मिश्र के अनेक गीत, मुक्तक उन्हें अभी याद हैं. डा मिश्र के मुक्तक ‘दूर ही दूर से बुलाता है /कौन है पास नहीं आता है /उसका आना ना अजनबी जैसा/ लगता फिर भी युगों का नाता है,’ को सुनाते हुए डा चौधरी ने कहा कि रामदरश मिश्र की अनेक कविताएं मैंने यहां पाठ्यक्रम में रखवाईं. उनकी सरलता का मुरीद रहा. वे अपने गीत गाकर सुनाते रहे हैं. एक बार छात्रों के साथ दिल्ली गया तो उनसे मिला. क्या सुमधुर गीत लिखा करते थे वे. ‘रात-रात भर मोरा पिहकें बैरन नींद ना आए‘ जैसे गीतों के रचयिता रामदरश मिश्र प्रकृति से अपनत्व महसूस करते थे. गुजरात में अहमदाबाद में साबरमती नदी के निकट प्रकृति के सान्निध्य में रहते थे. उनके निकट पक्षी हों, बादल हों, प्रेम की बात हो, प्रसन्नता की बात हो तो क्या ही कहना. उनका कवि मन इन्हीं को अपनी रचनाओं के केंद्र में रखता रहा है. डा चौधरी ने कहा कि नौकरी के दौरान उन्होंने अनेक संघर्ष भी किया, अनेक कष्ट उठाए लेकिन गुजरात में उन्हें बहुत कुछ दिया और आज वह हिंदी साहित्य में अपनी पूरी प्रतिष्ठा के साथ स्थापित हैं. सैकड़ों कृतियों के लेखक हैं. और आज भी लेखन में सक्रिय हैं.
याद रहे कि डा रामदरश मिश्र बीएचयू से गुजरात आए थे तथा अहमदाबाद, बड़ौदा और नवसारी में 8 साल अध्यापन किया था. यहां रहते हुए उन्होंने काफी कुछ लिखा. गुजरात से उन्हें जो प्यार मिला, उस उन्होंने उपन्यास ‘दूसरा घर‘ लिखा. अपने बीज वक्तव्य में कवि-आलोचक डा ओम निश्चल ने रामदरश मिश्र के कृतित्व और व्यक्तित्व का परिचय देते हुए उनकी सुदीर्घ साहित्यिक यात्रा को रेखांकित किया. उन्होंने कविता, कथा, उपन्यास और गद्य आदि के क्षेत्र में उनकी व्याप्ति और बहुआयामी लेखन की विशेषताएं उजागर की. उनकी रचनाओं से उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि राम दरश जी ने किसी एक विधा तक अपने को सीमित नहीं किया बल्कि अभिव्यक्ति के जितने क्षेत्र और जितनी विविधताएं हो सकती हैं, उनका वरण किया और आजादी के बाद के मोहभंग की स्थितियों को रेणु के उपन्यास `मैला आंचल` की तरह अपने शुरुआती उपन्यासों `जल टूटा हुआ` और `पानी के प्राचीर` में केंद्र में रखा. अनेक छोटे-बड़े उपन्यासों में उन्होंने जीवन और समाज की समस्याओं को उठाया और अनेक चरित्रों के साथ सह यात्राएं कीं. आखिरी कुछ उपन्यासों में उन्होंने अपनी पत्नी, अपने बेटे और स्वयं को केंद्र में रखा. ओम निश्चल ने इस अवसर पर उनके प्रसिद्ध गीत- पथ सूना है, तुम हो हम हैं, आओ बात करें /साथ सफर की घड़ियां कम है आओ बात करें‘ गाकर सभागार को झूमने पर मजबूर कर दिया. विशिष्ट अतिथि के रूप में डा मिश्र की पुत्री और दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डा स्मिता मिश्र ने कहा कि राम दरश जी का लेखन गांव- देहात और आंचलिक यथार्थ का लेखन है तथा उन्होंने कविता और कथा क्षेत्र में एक साथ प्रवेश किया और अपने जीवन में बेहतरीन गीत लिखे. उन्होंने गजलों की भी एक लंबी पारी खेली और हिंदी संसार को अनेक गजल संग्रह दिए. एक पिता के रूप में रामदरश जी कि चित्रित करते हुए उन्होंने कहा कि वास्तव में उन्होंने स्त्री पात्रों को और स्त्रियों को अपने जीवन में भी बहुत महत्व दिया है, जिसकी वे साक्षी रही है. यही कारण है कि उनके कथा साहित्य में स्त्री पात्र बहुत दृढ़ और साहसी हैं.
कथा सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो स्मिता मिश्र ने राम दरश जी की किस्सागोई की अनेक खूबियों का बखान किया. इस सत्र में के वक्ताओं डा मृदुला पारीक, डा रामगोपाल सिंह एवं डा ज्योति दवे ने रामदरश मिश्र की कहानियों की बारीक विशेषताओं का विश्लेषण किया. डा रामगोपाल सिंह ने उनके भाषिक व्यवहार पर एक व्यवस्थित पर्चा पढ़ा तथा कहा कि आंचलिकता के और आंचलिक भाषा के आम बोलचाल के जितने संभव मुहावरे और प्रयोग हो सकते हैं, वे सभी राम दरश जी के रचना संसार में मौजूद हैं. ये उनके कथा साहित्य को और रचना संसार को पठनीय बनाते हैं. इस सत्र का संचालन डा शिरीन शेख ने किया. रामदरश मिश्र की कविता एवं आत्मकथा विषयक सत्र के वक्ता थे डा नियाज पठान एवं डा ईश्वर सिंह चौहान. अध्यक्षता डा केके वैष्णव ने की. इस सत्र का संचालन डा तृप्ति भावसार ने किया. इसी के साथ चले समानांतर सत्र में डा सुरेश पटेल एवं डा राजेंद्र परमार ने मिश्र जी के साहित्यिक अवदान पर शोध पत्रों का वाचन किया. पूरे दिन विभिन्न सत्रों में चली संगोष्ठी में रामदरश जी के रचनात्मक अवदान के अनेक आयामों को रेखांकित किया गया. गोष्ठी में एक सत्र ‘अपने-अपने राम दरश मिश्र‘ था, जिसमें गुजरात के अनेक विद्वानों डा ओम प्रकाश गुप्ता, डा वीरेंद्र नारायण सिंह, डा अरुणेंद्र सिंह राठौर, डा अनूपा चौहान, डा ममता शर्मा, जयेंद्र त्रिपाठी, डा आशा सिंह सिकरवार, डा रमेश बहादुर सिंह ने उनसे जुड़े संस्मरण सुनाए. संचालन डा मीना बंजारा ने तथा आभार ज्ञापन डा बिनु भाईजी चौधरी ने. प्रारंभ में एचके आर्ट्स कालेज के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डा गोवर्धन बंजारा ने संगोष्ठी की प्रासंगिकता और आवश्यकता की चर्चा की. कालेज के मुख्य व्यवस्थापक धीरेन अवासिया ने अपने स्वागत वक्तव्य दिया. इस अवसर में 25 विद्वानों को सम्मानित भी किया. समारोह को प्रारंभ में संगोष्ठी के संयोजक डा सूर्यदीन यादव, डा जयवंत सिंह सरवैया, डा धरम सिंह देसाई एवं डा धीरज वणकर ने संबोधित किया. संगोष्ठी के संयोजक डा सूर्यदीन यादव ने आभार व्यक्त किया. इस आयोजन में साहित्यकार, मीडियाकर्मी, अध्यापक व छात्र उपस्थित थे.