नई दिल्ली: उर्दू और हिंदी के साहित्यकार यदि एक दूसरे के काम को समझते और अपनाते तो हमारे समाज में साहित्यिक-सांस्कृतिक समझ और गहरी हो सकती थी. उर्दू-हिंदी साहित्य का परस्पर लिप्यंतरण दोनों भाषाओं के संबंध को मजबूत कर सकता है. जैसे-जैसे समाज में बदलाव हो रहे हैं, वैसे-वैसे कहानी कहने के तरीके भी विकसित हो रहे हैं. हमें अपने समय और समाज को समझते हुए कथा कहने के नए शिल्प को अपनाना होगा. आप छोटी-छोटी चीजें करके दुनिया का ध्यान नए तरीकों से सोचने की ओर खींच सकते हैं. यह बातें राजकमल प्रकाशन के स्थापना दिवस पर आयोजित ‘भविष्य के स्वर’ में वक्ताओं ने कही. इस मौके पर विचार-पर्व ‘भविष्य के स्वर’ का पांचवां संस्करण प्रस्तुत किया गया. इस दौरान रंगकर्मी और कहानीकार फहीम अहमद, जाइन मेकिंग और फाइबर आर्टिस्ट कोशी ब्रह्मात्मज और कथाकार तसनीफ हैदर ने व्याख्यान दिए. इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लेखक, पाठक, संस्कृतिकर्मी, पुस्तक प्रेमी और पत्रकार मौजूद रहे.

फहीम अहमद ने समकालीन कथा कहन के तरीकों और उसके शिल्प में हो रहे बदलावों की ओर इशारा किया. उनका व्याख्यान ‘बदलते माध्यम और कथा का बदलता चेहरा’ विषय पर केन्द्रित था. उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे समाज में बदलाव हो रहे हैं, वैसे-वैसे कहानी कहने के तरीके भी विकसित हो रहे हैं. डिजिटल और सोशल मीडिया के माध्यम से भी कथाएं पाठकों तक पहुंच सकती हैं और उन्हें एक नई पहचान मिल सकती है. कोशी ब्रह्मात्मज ने कहा कि एम्ब्रायडरी सिर्फ एक डोमेस्टिक और पैसिव कला नहीं, बल्कि एक प्रभावशाली प्रतिरोध का माध्यम  है जो औरतों द्वारा अनपेड और अंडरएप्रिशिएटेड लेबर की वैल्यू को रीक्लेम करता है. उनका व्याख्यान ‘सोच के शब्द, समझ के धागे’ विषय पर केन्द्रित था. उन्होंने कहा कि  मेरा काम यही दिखाता है कि कैसे आप छोटी-छोटी चीज़ों को करके दुनिया अचंभित कर सकते हैं, लोगों का ध्यान नए तरीके से सोचने की ओर खींच सकते हैं. तसनीफ हैदर ने उर्दू और हिंदी साहित्य के बीच की दूरी, उनके साहित्यिक रिश्ते और समाज में उनके महत्त्व को रेखांकित किया. उनका व्याख्यान ‘उर्दू-हिंदी: नया दौर नये सवाल’ विषय पर केन्द्रित था. उन्होंने कहा कि मेरे लिए उर्दू केवल एक भाषा तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह एक संस्कृति, एक इतिहास और एक पहचान से जुड़ी हुई थी. घरों में उर्दू अखबारों, किताबों और शायरी के साथ एक गहरी तारतम्यता थी. हम उर्दू साहित्य के बड़े लेखकों, शायरों और कहानीकारों से परिचित थे, लेकिन हिंदी साहित्य के कई महत्त्वपूर्ण लेखकों से हम अपरिचित रहे.