नई दिल्लीः साहित्य अकादमी ने साहित्य मंच कार्यक्रम में ‘भारतीय महाआख्यानों की महान नायिकाएं’ विषय पर व्याख्यान आयोजित किया, जिसमें प्रख्यात ओड़िआ लेखक और विद्वान प्रफुल्ल कुमार महांति ने वक्तव्य दिया. उन्होंने विश्व के कई महाकाव्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि वहां क्लियोपेट्रा को छोड़कर कोई ऐसी महिला पात्र नहीं है जिसका जिक्र किया जा सके. जबकि रामायण से सीता और महाभारत से द्रौपदी न केवल भारत बल्कि विश्व की महान नायिकाएं हैं, जिनका मुकाबला अन्य कोई महिला चरित्र नहीं कर सकता. उन्होंने कहा कि रामायण और महाभारत देश के शुद्ध साहित्यिक ग्रंथ हैं और दोनों नायिकाएं एक विशेष सर्वमान्य धर्म (धार्मिक अर्थों में नहीं) का प्रतिनिधित्व करती हैं. सीता धरती का और द्रौपदी अग्नि का प्रतीक हैं. दोनों इन्हीं तत्त्वों से उत्पन्न भी होती हैं. धरती जहां अपने अंदर सबके गुण अवगुण समा कर सहनशीलता का परिचय देती है, वहीं अग्नि सबको ऊपर ले जाकर नष्ट कर देती है, लेकिन वह धरती को कभी जला नहीं पाती.
महांति ने इन चरित्रों को और स्पष्ट करते हुए उनके विवाह के लिए आयोजित स्वयंवर, और उसके बाद के जीवन पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि दोनों को युद्ध का दोषी ठहराया जाता है जो कि सत्य नहीं है. युद्ध के दूसरे तात्कालिक कारण थे. राम और युधिष्ठिर अलग-अलग संदर्भों में अपने राज धर्म निभा रहे होते हैं. सीता मर्यादा का प्रतीक हैं. द्रौपदी अंत में अकेले रह जाने के मिथ्या संसार का प्रतीक हैं. कार्यक्रम के आरंभ में प्रफुल्ल कुमार महांति का स्वागत हिंदी साहित्यकार सुरेश ऋतुपर्ण ने अंगवस्त्रम और सिंधी कवि मोहन हिमथाणी ने पुस्तक भेंट कर के किया. महांति के स्वागत वक्तव्य में साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि हमारे महाकाव्यों में सीता और द्रौपदी के अलावा भी अन्य नायिकाएं हैं जिन पर अब बातचीत शुरू हो रही है. इस संदर्भ में उन्होंने रामायण से उर्मिला और मंदोदरी और महाभारत से गांधारी, उत्तरा और रुक्मणी का जिक्र किया. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लेखक और विद्वान उपस्थित थे.