नई दिल्ली: राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद ने सिंधी भाषा दिवस पर राजधानी के राम कृष्ण पुरम स्थित कार्यालय सभागार में ‘सिंधी भाषा शिक्षा साहित्य संस्कृति‘ केंद्रित विमर्श का आयोजन किया. इस अवसर पर देशबंधु कालेज के प्राचार्य प्रो राजेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ पत्रकार और साहित्य आजतक के जय प्रकाश पाण्डेय, आर्य भट्ट कालेज की सहायक प्राध्यापक डा प्रीति जगवानी और सिंधी संस्कृति फाउंडेशन की संस्थापक और प्रबंध न्यासी अरुणा मदनानी उपस्थित थी. इस अवसर पर आनलाइन माध्यम से राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद के उपाध्यक्ष डा मोहन मंघनानी और अन्य सदस्यों ने परिषद की पत्रिका ‘साहित्य सिन्धू‘ का लोकार्पण भी किया. कार्यक्रम की शुरुआत भगवान झूलेलाल के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलन से हुई. आरंभ में राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद के निदेशक प्रो रविप्रकाश टेकचंदाणी ने सभी का स्वागत किया और इस दिवस के महत्त्व पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि यह एक संयोग है कि 10 अप्रैल, 1967 को जब सिंधी भाषा को भारतीय संविधान में शामिल कर मान्यता दी गई थी, जिसकी याद में यह सिंधी भाषा दिवस मनाया जाता है, उस दिन भी सिंधी समाज के आराध्य देव वरुणावतार भगवान झूलेलाल की जयंती थी यानी ‘चेटीचंड‘ था और आज भी वही दिन है.
प्रो टेकचंदाणी ने याद किया कि सिंधी को मान्यता मिलने में विलंब भले हुई हुआ था, पर संसद में यह निर्विरोध पास हुआ था. उन्होंने 7 अप्रैल, 1967 को तब के युवा सांसद अटल बिहारी वाजपेयी के उस वक्तव्य को याद किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि हिंदी मेरी मातृभाषा है, मेरी मां है, तो सिंधी मेरी मौसी है. मैं सिंधी भाषा का भी उतना मान रखता हूं जितना कि हिंदी भाषा का. भारत की सभी भाषाएं आपस में बहनें हैं. देर से ही सही सिंधी भाषा से जो नाइसांफी हुई उसे आज दूर किया गया है. प्रो राजेंद्र पाण्डेय ने कहा कि देशबंधु कालेज उन गिनेचुने कालेजों में है जहां सिंधी पढ़ाई जाती है. इस भाषा को बढ़ावा देने के लिए उनसे जो भी बन पड़ेगा, वे करेंगे. जय प्रकाश पाण्डेय ने कहा कि भाषाओं के संरक्षण के लिए उनके प्रति गौरव भाव के साथ ही उनके प्रयोग की आवश्यकता है. अगर आप अपने घरों में, मित्रों के बीच अपनी भाषा में बात करें तो भी आपकी भाषा को बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने संपर्क भाषा के रूप में हिंदी की स्वीकार्यता के साथ ही सिंधी साहित्यकारों से हिंदी में लेखन और अनुवाद को बढ़ावा देने पर भी बल दिया. डा प्रीति जगवानी ने इंटरनेट और तकनीक से सिंधी को जोड़ने की बात कही ताकि यह युवाओं और किशोरों के बीच लोकप्रिय हो सके. अरुणा मदनानी ने विभाजन से जुड़े संग्रहालय में सिंधी से जुड़े कार्नर के बारे में विस्तार से बताया.