जयपुर: समरस सृजन साहित्य संस्थान एवं जयपुर काव्य साधक की संयुक्त काव्य गोष्ठी का प्रारम्भ वैद्य भगवान सहाय पारीक की ढूंढाड़ी में सरस्वती वंदना के साथ हुआ. यह इस तरह की 15वीं कविता गोष्ठी थी. संस्कृत कालेज से सेवानिवृत्त प्रोफेसर डा सत्यनारायण शर्मा के आतिथ्य में आयोजित इस गोष्ठी की अध्यक्षता साकार श्रीवास्तव ने की. काव्य गोष्ठी में समरस के अध्यक्ष गीतकार लक्ष्मण लड़ीवाला, वरिष्ठ उपाध्यक्ष राव शिवराज पाल सिंह, विनय कुमार ‘अंकुश‘, अरुण ठाकर, भानु भारद्वाज, साकार श्रीवास्तव, अशोक कुमार शर्मा, वैद्य भगवान सहाय पारीक, डा एनएल शर्मा, नीता भारद्वाज, सावित्री रायजादा सृजित आदि ने भावपूर्ण काव्य पाठ किया. रंजीता जोशी ने पढ़ा, ‘बेवफ़ाई भी वफ़ा के साथ खूब निभाई तुमने, टूटा जब दिल का आईना, खूब दवा भी हमसे मंगाई तुमने. दस्तूर है इश्क़ का हमेशा से, मुस्कुराते चेहरे पर अश्क आते हैं, दर्द अपनों से ही छिपाते हैं.‘ तो राव शिवराजपाल सिंह ने व्यंग्य रचना सुनाई, ‘क्योंकि लगाना उसके ही चूना है इसीलिए ही इश्क के लिए उसको चुना है. मजनुओं की भीड़ में जेब उसकी भारी है इसीलिए तो इतना बड़ा जाल बुना है,’ .
डा श्याम सिंह राजपुरोहित, सेवानिवृत आईएएस ने पढ़ा, ‘रंगीन मेरी शामों सहर है, क्योंकि तू मेरी हमसफर है. आसान मेरी हर डगर है, क्योंकि तू मेरी हमसफर है.‘ उन्होंने श्रोताओं की मांग पर, ‘वो रूह से बंधा है और बदन रक्स में है. वो नजर नहीं आता, वो मेरे हर अक्स में है‘ रचना भी सुनाई. समरस की उपाध्यक्ष डा निशा अग्रवाल ने, ‘तुझे कान्हा कहूं या लाल मोरे सांवरिया, गोपाला कहूं या बाल, मोरे सांवरिया. तू है अहंकार, मोरे सांवरिया,’ सुनाकर मन मोह लिया. मुख्य अतिथि डा सत्यनारायण शर्मा ने शृंगारित भावों का गीत ‘गीत से गजल की जब पड़े भांवरी‘ सुनाकर वाहवाही लूटी. इस अवसर पर डा एनएल शर्मा ‘निर्भय‘ के कविता संग्रह ‘जिजीविषा‘ का विमोचन भी हुआ. पुस्तक में मुक्तक, दोहा, रोला, कुण्डलिया, गजल गीतिका सहित कुल 133 रचनाएं संकलित हैं. अध्यक्षता कर रहे साकार श्रीवास्तव ने कहा कि बहुत समय बाद इतनी श्रेष्ठ कविताओं का रसास्वादन कर आनंद की अनुभूति हो रही है. संचालन डा निशा अग्रवाल ने किया. डा एनएल शर्मा ने सभी कवियों, अतिथियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया, तो समरस के अध्यक्ष लड़ीवाला ने मेजबानी के लिए डा शर्मा का आभार व्यक्त किया.