नई दिल्ली: वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार सेरा यात्री नहीं रहे. उनके निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर व्याप्त हो गई. यात्री ने करीब 18 कथा संग्रह, 33 उपन्यास, दो व्यंग्य-संग्रह लिखे. इसके अलावा एक कथा संग्रह और संस्मरण कृति का संपादन किया. उनके चर्चित उपन्यासों में ‘दराजों में बंद दस्तावेज‘, ‘लौटते हुए‘, ‘कई अंधेरों के पार‘, ‘अपरिचित शेष‘, ‘चांदनी के आरपार‘, ‘बीच की दरार‘, ‘टूटते दायरे‘, ‘चादर के बाहर‘, ‘प्यासी नदी‘, ‘भटका मेघ‘, ‘आकाशचारी‘, ‘आत्मदाह‘, ‘बावजूद‘, ‘अंतहीन‘, ‘प्रथम परिचय‘, ‘जली रस्सी‘, ‘युद्ध अविराम‘, ‘दिशाहारा‘, ‘बेदखल अतीत‘, ‘सुबह की तलाश‘, ‘घर न घाट‘, ‘आखिरी पड़ाव‘, ‘एक जिंदगी और‘, ‘अनदेखे पुल‘, ‘कलंदर‘ और ‘सुरंग के बाहर‘ आदि शामिल है.
उनके चर्चित कथा संग्रह में ‘केवल पिता‘, ‘धरातल‘, ‘अकर्मक क्रिया‘, ‘टापू पर अकेले‘, ‘दूसरे चेहरे‘, ‘अलग-अलग अस्वीकार‘, ‘काल विदूषक‘, ‘सिलसिला‘, ‘अकर्मक क्रिया‘, ‘खंडित संवाद‘, ‘नया संबंध‘, ‘भूख तथा अन्य कहानियां‘, ‘अभयदान‘, ‘पुल टूटते हुए‘, ‘विरोधी स्वर‘, ‘खारिज और बेदखल‘, ‘परजीवी‘, व्यंग्य संग्रह में ‘किस्सा एक खरगोश का‘, ‘दुनिया मेरे आगे‘ और संस्मरण में ‘लौटना एक वाकिफ उम्र का‘ शामिल है. उनकी पत्नी उषा देवी, दो पुत्रियों का निधन हो चुका है. अब उनके परिवार में एक पुत्री और दो पुत्र आलोक यात्री और अनुभव यात्री हैं. सेरा यात्री को कई पुरस्कारों से नवाजा गया. उनमें प्रमुख हैं सेतु शिखर सम्मान, पिट्सबर्ग अमेरिका, महात्मा गांधी साहित्य सम्मान, सारस्वत सम्मान और साहित्य भूषण शामिल है. याद रहे कि यात्री कुछ समय से बीमार थे. गाजियाबाद के कवि नगर स्थित अपने घर पर उन्होंने अंतिम सांस ली. दस जुलाई 1932 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जन्मे सेवा राम यात्री साहित्य की दुनिया में सेरा यात्री के नाम से चर्चित रहे.