कोलकाताः भारतीय संस्कृति संसद एवं भारतीय विद्या मंदिर के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतीय शास्त्रों के आधार पर भारत की प्राचीनता का विवेचन विषय’ पर एक संगोष्ठी का आयोजन हुआ. संगोष्ठी का आधार बिंदु वास्तुविद शोध प्रज्ञ रूपा भाटी के गहन अध्ययन पर केंद्रित था. भाटी ने विभिन्न शास्त्रों के साक्ष्य के हवाले से सिद्ध किया कि भारतीय इतिहास एक लाख 72 हजार वर्षों से भी पूर्व का है. भाषा वैज्ञानिक, लोकस्मृति, भूतत्व तथा मिथक शास्त्रों के हवाले से उन्होंने निदर्शित किया कि वेदों तथा उसके बाद के ग्रंथों में वर्णित खगोलीय दशाओं के अध्ययन को भौगोलिक साक्ष्यों के साथ मिलाकर देखने से पता चलता है कि भारतीय संस्कृति का इतिहास विश्व के अकादमिकों द्वारा निर्धारित काल से भी प्राचीन है. इस संबंध में उन्होंने सरस्वती नदी की ऐतिहासिकता तथा उसकी धारा के खिसकते-खिसकते अन्तर्धान होने के परिप्रेक्ष्य में भारतीय संस्कृति की पुरातात्विकता को रेखांकित किया.
अपने वक्तव्य में प्रज्ञ रूपा भाटी ने विदेशों में हुए युगान्तकारी शोधों का उदाहरण दिया और कहा कि लोक स्मृतियों में आज भी विद्यमान घटनाओं का अपना अर्थ है, और जब आधुनिक शोध के साथ उनकी संगति बिठाते हैं, तो कई बातें सत्य दिखती हैं. कार्यक्रम की अध्यक्षता भक्ति वेदांत इंस्टीट्यूट कोलकाता के अध्यक्ष भक्ति स्वरूप व्रजापति महाराज ने की. परिकल्पना संस्थाध्यक्ष डॉ बिट्ठलदास मूंधडा की थी. कार्यक्रम के शुरुआती चरण में डॉ मूंधड़ा ने स्वागत भाषण किया. साहित्य मंत्री डॉ तारा दूगड़ ने अतिथियों व दर्शक-श्रोताओं के प्रति आभार जताया. कार्यक्रम में राज गोपाल सुरेका, विजय झुनझुनवाला, राजेश दूगड़, गोपाल दास चांडक, महावीर बजाज, डॉ बाबूलाल शर्मा, राजीव माहेश्वरी, बंशीधर शर्मा, महावीर प्रसाद रावत, रतन शाह, राममोहन लाखोटिया, शंकरलाल सोमानी, अजयेंद्र नाथ त्रिवेदी, डॉ शारदा फतेहपुरिया एवं सुमन सरावगी प्रभृति सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे.