नई दिल्ली: हिंदी की जानीमानी लेखिका मन्नू भंडारी की जयंती पर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में एक विचारोत्तेजक संगोष्ठी का आयोजन हुआ, जिसमें लेखिका मधु कांकरिया, कथाकार-आलोचक विवेक मिश्रा और प्रकृति करगेती ने भाग लिया. संचालन रश्मि भारद्वाज ने किया. गोष्ठी के बाद श्रोताओं और वक्ताओं के बीच सवाल-जवाब भी हुए. ममता कालिया, मृदुला गर्ग, आकांक्षा पारे, नीला प्रसाद आदि ने प्रश्न पूछे. भारद्वाज ने गोष्ठी की शुरुआत करते हुए मंन्नू भंडारी को स्त्रीवाद के नजरिये से देखने का प्रयास करते हुए ‘आपका बंटी‘ की मां शकुन के विद्रोह की बात कही. उनका मानना था कि मन्नू भंडारी ने साहसिक स्त्री पात्रों का निर्माण किया है भले ही वह प्रेम विवाह और मातृत्व के त्रिकोण में फंसी हों पर वह अपना रास्ता चुनती हैं. प्रकृति करगेती ने मंन्नू भंडारी के किरदारों को सहज सरल बताया और कहा कि मन्नू भंडारी ने जैसा देखा वैसा ही लिखा और पात्रों को किसी विचारधारा से नहीं गढ़ा. ‘लारा लप्पा लारा लप्पा‘ गीत के हवाले से करगेती ने कहा कि जिस तरह गाने के अंत में लड़कियां पुरुषों की कुर्सियों पर कब्जा करने की बात कहती हैं, उसी तरह मन्नू भंडारी भी अपनी कहानियों में स्त्रियों के सशक्तीकरण की बात कहती हैं.
करगेती ने मन्नू भंडारी की कहानियों में नैतिक आधार के पीछे उस दौर के समाज की मानसिकता को रेखांकित किया और कहा कि वह नैतिक आधार सभी मनुष्यों के लिए एक जैसा था. विवेक मिश्रा ने मन्नू भंडारी की कहानियों को उनके समय और समाज में पहचानने की जरूरत पर बल दिया. उन्होंने कहा कि यह वह दौर था जब न्यूक्लियर फैमिली बन रही थी. स्त्रियां नौकरी करना शुरू कर चुकी थीं. एक तरफ पढ़ाई का बोझ, तो दूसरी तरफ घर चलाने की भी जिम्मेदारी थी. महानगर में स्त्री की आकांक्षा भी व्यक्त हो रही थी और करियर की भी जरूरत महसूस हो रही थी. उन्होंने कहा कि मन्नू भंडारी परंपरा से विद्रोह कर रही थीं क्योंकि परंपरा और संस्कारों के नाम पर स्त्रियों को बहुत छला गया था. विवेक मिश्रा ने ‘रानी का चबूतरा‘ कहानी का जिक्र करते हुए गुलाबो जैसी गरीब महिला के संघर्ष को रेखांकित किया जिसने शराबी पति को घर से निकाल दिया था और खुद बच्चे को पाल रही थी. उन्होंने ‘स्त्री सुबोधिनी‘ कहानी के पात्र को रेट्रोग्रेसीव बताया जिस पर विवाद हुआ. मृदुला गर्ग और नीला प्रसाद का कहना था कि वह एक व्यंग्यात्मक कहानी है इसलिए उसके व्यंग्य को समझने की जरूरत है.
मधु कांकरिया ने मंन्नू भंडारी को अपनी मां की रिश्ते में दूर की बहन बताते हुए कहा कि मंन्नू भंडारी की कहानियां जीवन के ताप से तपी हुई कहानियां थीं. साठ के दशक में बदलती हुई स्त्री की कहानी थी. उन्होंने ‘महाभोज‘ को एक स्त्री द्वारा हिंदी में पहला राजनीतिक उपन्यास लिखने की बात कही. कांकरिया का कहना था कि एक स्त्री बिना पिता, पति और प्रेमी या पुत्र के संरक्षण के भी जी सकती है. वह रेडिकल फेमिनिज्म की लेखिका नहीं पर वह परंपरा और धर्मिक कर्मकांड की विरोधी हैं. उनके भीतर प्रेमचन्द का आदर्श और जैनेंद्र का मनोविज्ञान भी है. ममता कालिया ने सवाल उठाते हुए कहा कि मंन्नू भंडारी ने ‘ऊंचाई‘ कहानी में सेक्स के टैबू को भी तोड़ा लेकिन इशारों में बात कही. उनका सेंस ऑफ ह्युमर भी जबरदस्त था. उन्हें 21वीं सदी की लेखिका के रूप में मत देखिये. आकांक्षा पारे ने सवाल किया कि मन्नू भंडारी को नई कहानी की त्रयी में क्यों नहीं शामिल किया गया. राजेन्द्र यादव, मोहन राकेश और कमलेश्वेर को त्रयी माना गया जबकि मोहन राकेश, कमलेश्वेर और मंन्नू भंडारी की त्रयी होने चाहिए. विचार गोष्ठी के बाद पत्रकार प्रियदर्शन का लिखा नाटक ‘बेटियां मन्नू की‘ का मंचन किया गया. ‘बेटियां मन्नू की‘ में मन्नू भंडारी की 8 कहानियों के अंशों को इस्तेमाल किया गया है. इस नाटक का निर्देशन प्रसिद्ध रंगकर्मी देवेंद्र राज अंकुर ने किया.