मुजफ्फरपुरः सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य के आधुनिक युग के ऐसी बहुमुखी प्रतिभा वाले कवि हैं, जिन पर आधुनिक युग की अनेक विचारधाराओं का प्रभाव हैं. पंत जी का जीवन सुंदर प्रेरणा से प्रारंभ हुआ, जिसमें सौंदर्य है, मादकता है, आह्लाद है, नवीनता है व चंचलता की गहराई है. यही कारण है कि कवि ने प्रकृति को मां, शिक्षक या पथ प्रदर्शक, प्रियतमा व परमात्मा के विराट रूप में देखा है. यह कहना है नूतन साहित्यकार परिषद अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह चंद्र का. वे साहित्य भवन कांटी में परिषद की ओर से आयोजित पंत की जयंती और श्रद्धांजलि समारोह में बोल रहे थे. चंद्र ने कहा कि छायावाद के प्रमुख स्तंभ पंत जी के काव्य में प्रेम व सौंदर्य का समुचित उद्घाटन हुआ है. कहीं कवि प्रकृति से प्रेम करता हुआ दिखाई देता है, तो कहीं मानव से, तो कहीं ईश्वर से. जगत व प्रकृति के विशाल आंगन में पंत अनेक प्राकृतिक उपकरणों द्वारा अपनी सौंदर्य-भावना को व्यक्त करते हुए दिखाई देते हैं. यौवन के प्रथम चरण में उन्होंने किसी किशोरी के बाल जाल में अपने लोचन उलझाने की आकांक्षा की थी, फिर भी वृक्ष की छाया को छोड़ प्रेयसी के केशों में उलझना उन्हें स्वीकार नहीं हो सका‌. पंत कहते हैं, ‘छोड़ द्रुमों की मृदु छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया, बाले! तेरे बाल जाल में कैसे उलझा दूं लोचन?’ पंत जी को कविता की प्रेरणा उनकी चिर सहचरी आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर मिली.

यह समारोह ‘ प्रकृति की कोमल भावनाओं और अनुभूतियों के कवि सुमित्रानंदन पंत की कालजयी पंक्तियों ‘वियोगी होगा पहला कवि, आह से उपजा होगा गान, निकलकर आंखों से चुपचाप, बही होगी कविता अनजान…’ के भाव से मना. सेवानिवृत्त शिक्षक ज्योति नारायण सिंह ने पंत की साहित्यिक यात्रा के बारे में कहा कि प्रकृति के अनुपम चितेरे पंत छायावाद व प्रगतिवाद दोनों पर उनकी लेखनी चली. स्वराजलाल ठाकुर ने कहा कि पंत जी को काव्य संग्रह ‘चिदंबरा’ के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार व पद्मभूषण सम्मान भी मिला. प्रकृति की अनन्तता व व्यापकता का लाक्षणिक काव्यात्मक निरूपण करने में वे इतना अधिक सूक्ष्म सफल हुए कि उन्हें अंग्रेज़ी के महान कवि ‘वर्ड्सवर्थ’ के समकक्ष हिन्दी साहित्य का ‘वर्ड्सवर्थ’ कहा गया. समारोह में उपस्थित लोगों ने पंत की तस्वीर पर श्रद्धासुमन अर्पित किया. समारोह में उनके संकलन ‘ग्राम्या’ की रचना ‘उन्माद यौवन से उभर.., सुख-दुख के मधुर मिलन से जीवन हो परिपूरन.., जैसी कविताओं का पाठ भी किया गया. अतिथियों का स्वागत पिनाकी झा व धन्यवाद ज्ञापन राकेश कुमार ने किया. जयंती समारोह में नंदकिशोर ठाकुर, अनिल झा, महेश प्रसाद, मनोज मिश्र, वसंत शांडिल्य, दिलजीत गुप्ता, प्रकाश कुमार सहित अनेक साहित्य प्रेमी उपस्थित थे.