पटनाः डॉ सुरेंद्र प्रसाद जमुआर और शल्य-चिकित्सक डॉ जितेंद्र सहाय हिंदी की अमूल्य सेवा करने वाले प्रणम्य साहित्यकार थे. परिश्रम और साहित्यिक प्रतिभा दोनों के ही आभूषण थे. इसी तरह विदुषी कवयित्री और पद्मश्री से सम्मानित डॉ शांति जैन और संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति पं आद्या चरण झा देवभाषा संस्कृत और राजभाषा हिंदी से जुड़ी अपनी सेवाओं के लिए सदैव स्मरण किए जाते रहेंगे. यह बात बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ अनिल सुलभ ने सम्मेलन द्वारा आयोजित जयंती समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए कही. डॉ जितेंद्र सहाय ने जिस कौशल से चाकू चलाया उसी कौशल से लेखनी भी चलाई. वे साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष एवं एक प्रभावशाली नाटककार थे. उनके नाटकों ‘निन्यानबे का फेर’, ‘मुण्डन’ , ‘बग़ल का किरायेदार’ और ‘महाभाव’ के मंचन पटना एवं अन्य नगरों के प्रेक्षागृहों में होते रहे.

सम्मेलन के उपाध्यक्ष डॉ शंकर प्रसाद ने कहा कि डॉ जितेंद्र सहाय एक लोकप्रिय शल्य-चिकित्सक होने के साथ ही, लोकप्रिय रचनाकार भी थे. डॉ सहाय के पुत्र और पटना उच्च न्यायालय में अधिवक्ता अमित प्रकाश ने कहा कि उनके पिता जितनी निष्ठा और प्रेम साहित्य से रखते थे, उतना ही साहित्य-सेवियों से भी. डॉ जमुआर के साहित्यकार पुत्र डॉ ओम प्रकाश जमुआर ने कहा कि मुझे यह सौभाग्य रहा कि अपने पिता के लेखन कार्य में मैं सहायक हो सका. एक तरह से देखें तो जमुआर जी ने अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य का ही नहीं, बिहार के साहित्यकारों का भी बड़ा भला किया. उन्होंने ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ तो नहीं लिखा, किंतु बिहार के साहित्यकारों का इतिहास लिख डाला. इस मौके पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी बच्चा ठाकुर, डॉ शांति जैन की अनुजा शारदा जैन, शायर आरपी घायल, डॉ विद्या चौधरी, शुभ चंद्र सिन्हा, डॉ सुधा सिन्हा, मधु रानी लाल, श्याम बिहारी प्रभाकर सहित कई लोगों ने अपनी बात रखी.