बालीगंज: “राजस्थानी भाषा में जो वीरता का वर्णन हैवह दुनिया की किसी भी अन्य साहित्य में नहीं है. इस भाषा के पीछे कलासंस्कृतिसाहित्यलोक साहित्यलोक संस्कृतिमान्यताओंत्योहारोंरीति-रिवाजोंगीतोंगाथाओंकिस्से-कहानियोंकहावतोंमुहावरों की विपुल संपदा है. मायड भाषा की सुवास को बचाए रखने की जरूरत है.” यह बात अखिल भारत वर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिव कुमार लोहिया ने कही. अतिथियों एवं सम्मेलन के पदाधिकारियों ने दीप प्रज्ज्वलन कर समारोह की शुरुआत की. लोहिया ने सभी का अभिनंदन किया और राजस्थानी भाषा दिवस की बधाई देते हुए कहा कि सम्मेलन मायड भाषा को बढ़ावा देने के लिए प्रत्येक वर्ष राजस्थानी भाषा साहित्य सम्मान देता है. मायड भाषा विलुप्त होने पर इसके पीछे सैकड़ों वर्षों के संस्कार-संस्कृति का भी विलोप हो जाएगा. हम भाषा को घर में बचाएं और हमारे बच्चे अपनी भाषा में बात करते रहे तो भाषा बची रहेगी. सम्मेलन पुराने और नए को जोड़ने का कार्य कर रहा है. लोहिया ने समाज- बंधुओं से आह्वान किया कि आप सम्मेलन के कार्यकर्मोंउद्देश्यों से जुड़े एवं अपने विचार हमें भेजें हम आपको आश्वस्त करते हैं कि उस पर विचार-विमर्श कर प्रभावी कार्य करेंगे.  

समारोह के मुख्य वक्ता रतन लाल साह ने कहा कि धर्म आपको जोड़कर नहीं रख सकता हैं. बांग्लादेश इसका सबसे नवीनतम उदाहरण हमारे सामने है. बोलियां भाषा का शृंगार होती हैंजिस भाषा में जितनी ज्यादा बोलियां वह भाषा उतनी ही सुंदर भाषा है. राजस्थानी भाषा इस मायने में बहुत समृद्ध है. अपार साहित्य संपदा राजस्थानी भाषा के पास है. भाषा किसी व्यक्ति के लिए पानी जितना ही जरूरी है. साह ने लोगों से निवेदन करते हुए कहा कि आप कभी भी अपनी भाषा बोलने में हीनता महसूस ना करें. डा हरि प्रसाद कानोडिया ने सुझाव देते हुए साहित्य सम्मान से सम्मानित विद्वानों से कहा कि राजस्थानी में कहानियां भी लिखी जाए और साथ में उसका अनुवाद हिंदी व अंग्रेजी में साथ-साथ दिया जाए यह भाषा के प्रचार-प्रसार में प्रभावी कदम होगा. बाल साहित्यकार और शिक्षाविद डा मदन गोपाल लढा ने वक्तव्य देते हुए कहा कि भाषा की मान्यता से ज्यादा जरूरी है कि हम अपने घरपरिवारसमाजउत्सव में इसे मान्यता दें. हम यहां इसे बचाकर रख पाते हैं तो यह किसी भी सरकारी मान्यता से बड़ी बात होगी. उन्होंने राजस्थानी कविता का पाठ कर उपस्थित लोगों को आनंद से भर दिया.