लखनऊ: भारतेंदु नाट्य अकादमी में अभिव्यक्ति के उत्सव ‘संवादी‘ के तृतीय एवं अंतिम दिन के प्रथम सत्र में लेखिका प्रोफेसर सताक्षी आनंद की पुस्तक ‘फेयर टेल्स‘ के विमोचन के बाद चर्चा आरंभ हुई तो अतीत से वर्तमान तक की कहानियों के परिदृश्य प्रकट हुए. परी कथा से लेकर संविधान तक इस चर्चा के केंद्र में रहे. अंग्रेजी के शिक्षक सच्चिदानंद सिंह ने कहा कि दूसरों की पंक्तियां लेकर नया अर्थ निकालने वाले इसे ज्यादा आसान मानते हैं. आपकी उस तरीके की ओरिजनलिटी दिखाई पड़ती है. आपने इसमें ‘फेयर टेल्स‘ कैसे किया? संविधान की जानकार सताक्षी का जवाब भी उसी अंदाज में आया. ‘मेरे और आपके फिंगर प्रिंट कभी समान नहीं हो सकते. हर लेखक के लेखन का तरीका भी ऐसा ही होता है.‘ सच्चिदानंद के स्त्री संबंधी सवाल पर सताक्षी का उत्तर था कि नारी हीन नहीं होती, वह जो चाहे कर सकती है. बचपन में ही बच्चे के मस्तिष्क में डाल दिया जाए कि डूबती हुई बहन अपने भाई की प्रतीक्षा न करे कि वह उसे बचाएगा. आपने पुस्तक में असाधारण सा मैजिक क्रिएट किया है, क्या यह सोच कर किया या अपने आप हो गया? सताक्षी ने कहा कि सोचकर ही किया. हमारे आसपास जो चीजें दिखती हैं उससे काफी कुछ सीख मिलती है.‘ दुर्गा सप्तशती पर किए ड्रामा का उदाहरण देकर कहा, ‘मैं अपने को फेयरी महसूस नहीं करती थी.‘ सच्चिदानंद ने कहा कि आपने जिन फेयरी टेल्स पर काम किया है, वे सब पश्चिम से आई हुई हैं. सताक्षी ने बिना क्षण गंवाए देश का उदाहरण दिया, ‘भारत में 1947 से महिलाओं को मतदान का अधिकार है. फिर भी लोग इस अधिकार के लिए लड़ते रहे.‘
सच्चिदानंद ने कहा कि इंग्लैंड में तो 1921 में महिलाओं को वोट देने का अधिकार मिला. स्विट्जरलैंड में सबसे देर में मिला. फिर पश्चिमी सभ्यता में गोरे और काले का भेदभाव बहुत ज्यादा है. यह फेयरी टेल्स से पता चलता है. आपको स्नो वाइट ही मिलेगी सांवली नहीं, जबकि शैतान काला होता है. भाव यह कि जो भी अच्छी चीज होती है वो सफेद होती है, जो बुरी वो काली. सताक्षी ने सहमति जताई तो सच्चिदानंद ने सवाल किया कि भारतीय समाज इस समय कहां खड़ा है? सताक्षी का उत्तर था कि हमारे यहां शहरी और ग्रामीण परिवेश में बहुत अंतर है. पश्चिमी सभ्यता को हम ग्रामीणों पर थोप नहीं सकते. सभ्यता से चर्चा संविधान पर आ टिकी. सताक्षी ने कहा कि संविधान को आसान होना चाहिए, लेकिन अधिक आसान हो जाएगा तो वकील की जरूरत क्यों पड़ेगी? सच्चिदानंद के चेहरे पर असहमति के भाव आए तो वह संविधान से वह लेखन की ओर आए. पूछा लेखक कौन पसंद है? उत्तर मिला कि रामधारी सिंह दिनकर. दिनकर की हुंकार आपकी कविता में महसूस होती है. कुछ सुना दीजिए… सच्चिदानंद के आग्रह पर सताक्षी ने कविता सुनाई, जिसकी पंक्तियां थीं- नहीं चाहिए अर्जुन कोई इस बार मुझे बचाने को, नहीं पुकारूंगी मैं केशव अपनी लाज बचाने को. जो दांव लगा दे नारी की स्वीकार नहीं अब वो परिवार उस द्रौपदी को, इस बार मैं दुर्गा को गुहार लगाऊंगी मैं अपनी रक्षक स्वयं बन जाऊंगी.