जमशेदपुर: करनडीह स्थित दिशोम जाहेर में 37वें इंटरनेशनल संताली राइटर्स कांफ्रेंस एंड लिटरेरी फेस्टिवल में साहित्यकारों ने नयी पीढ़ी को अपनी भाषा और जनजीवन के प्रति लगाव को बढ़ाने की बात कही और इसके प्रचार-प्रसार में योगदान देने के लिए प्रेरित किया. साहित्यकारों ने कहा कि संताली साहित्य आदिवासी जनजीवन का सजीव दर्पण बनकर उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक अनुभवों को समृद्ध कर रहा है. यह न केवल उनकी परंपराओं और लोकाचारों को संरक्षित करता है, बल्कि आधुनिक युग के संदर्भ में उनकी अस्मिता और पहचान को भी सुदृढ़ करता है. वे अपनी कविताओं, कहानियों और गीतों के माध्यम से संताली साहित्य के साथ-साथ आदिवासी जीवन के संघर्ष, सपने और उत्सवों को सामने ला रहे हैं. उनकी कृतियां न केवल संताली समुदाय को एकजुट करती हैं, बल्कि बाहरी दुनिया को उनके अद्वितीय दृष्टिकोण और जीवन मूल्यों से परिचित कराता है. युवा पीढ़ी अब इसे और ऊंचाइयों पर ले जाने में अपना योगदान दें.
इंटरनेशनल संताली राइटर्स कांफ्रेंस एंड लिटरेरी फेस्टिवल का आयोजन आल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन और जाहेरथान कमेटी के द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था. उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि एमपीसी कालेज बारीपदा की पूर्व प्राचार्या और पद्मश्री से सम्मानित डा दमयंती बेसरा, पश्चिम बंगाल के झाड़ग्राम लोकसभा के सांसद और पद्मश्री से सम्मानित खेरवाल सोरेन के साथ आल इंडिया संताली राइटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष लक्ष्मण किस्कू, महासचिव रबिंद्रनाथ मुर्मू और आयोजन समिति के सचिव गणेश टुडू मौजूद थे. सम्मेलन में साहित्यकार मानसिंह माझी, जलेश्वर किस्कू, दीजापदो हांसदा, जोबा मुर्मू, गणेश टुडू और डा फटिक मुर्मू की भी उपस्थिति उल्लेखनीय थी. यहां आदिवासी पुस्तक मेला में 17 स्टाल लगाये गये थे.