मुंबई: “हम उन कहानियों का शिकार नहीं बन सकते जो भारत के अस्तित्व के लिए ही हानिकारक स्रोतों से निकलती हैं. हमें अपनी बौद्धिक विरासत नालंदा जैसी संस्थाओं को पुनर्जीवित करने के लिए काम करना होगा और यह 2047 में विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है.” यह बात मुंबई में केपीबी हिंदुजा कालेज के 75वें वर्षगांठ समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कही. उन्होंने कहा कि हमें सनातन से पूरी तरह से जुड़े रहना चाहिए. और सनातन को हमारी संस्कृति, हमारी शिक्षा का हिस्सा होना चाहिए. वास्तव में, सनातन समावेशिता का प्रतीक है. सनातन वैश्विक चुनौतियों की ओर इशारा करते हुए सबसे कठिन समस्याओं का समाधान प्रदान करता है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एक उपहार है और देश में हमें शैक्षिक उत्कृष्टता की दिशा में काम करना चाहिए. परोपकार से परे, यह हमारे वर्तमान में निवेश है, हमारे भविष्य में निवेश है और सीधे शब्दों में कहें तो यह उद्योग, व्यवसाय और व्यापार के विकास के लिए निवेश है. और इसलिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए कि ये निवेश बड़ी छलांग लगाएं. उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश को देखिए. अगर एक समय में हमारी जीडीपी दुनिया की एक तिहाई या उससे ज़्यादा थी, तो इसका आधार क्या था? हमारे पास गौरवशाली संस्थान थे- उदंतपुरी, तक्षशिला, विक्रमशिला, सोमपुरा, नालंदा, वल्लभी. दुनिया ने नाक-भौं सिकोड़ी. दुनिया के कोने-कोने से विद्वान ज्ञान प्राप्त करने, ज्ञान देने और ज्ञान बांटने के लिए आते थे.
उपराष्ट्रपति ने धनखड़ ने कहा कि हमारे शिक्षा संस्थानों से ज्ञान की प्यास तृप्त होती थी. लेकिन फिर करीब 1200 साल पहले क्या हुआ? नालंदा, प्राचीन भारत का बौद्धिक रत्न, इसमें 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक रहते थे. नौ मंजिला इमारत. और क्या हुआ? 1193, बख्तियार खिलजी, हमारी संस्कृति और हमारे शैक्षणिक संस्थान का बेखौफ विध्वंसक. परिसर में आग लगा दी गई. महीनों तक आग ने विशाल पुस्तकालयों को जलाकर राख कर दिया, गणित, चिकित्सा और दर्शन पर सैकड़ों और हज़ारों अपूरणीय पांडुलिपियों को राख कर दिया. उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह बर्बरतापूर्ण विनाश केवल वास्तुकला का नहीं था, बल्कि इसके माध्यम से सदियों के ज्ञान का व्यवस्थित विनाश किया गया था. इसीलिए हमें अपने लोगों को सनातन मूल्यों के बारे में जागरूक करना चाहिए. उन लपटों में जो कुछ लुप्त हो गया, वह प्राचीन भारतीय विचारों का जीवंत अभिलेख था, जिससे एक बौद्धिक शून्य पैदा हुआ जो इस सभ्यता के सबसे गहरे सांस्कृतिक नुकसानों में से एक के रूप में इतिहास में गूंजता रहता है. उपराष्ट्रपति ने कहा कि जरा देखिए कि कौन सा देश 5,000 साल की सभ्यता के मूल्यों पर गर्व कर सकता है.