लखनऊ: उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के निराला सभागार में नगर की साहित्यिक संस्था ‘साहित्य आराधन‘ ने आलोक कुमार दुबे की षष्टिपूर्ति के अवसर डा अमिता दुबे की छ: पुस्तकों का लोकार्पण और उन पर परिचर्चा आयोजित की. इस आयोजन में जिन पुस्तकों का लोकार्पण और चर्चा हुई उनमें ‘व्यंजना सृजन की‘, ‘अमृतायन‘, ‘यादें पिता की‘, ‘चेतें पिता दे‘ (डोगरी), ‘कलम से क्रांति सुखमनी (मराठी अनुवाद) शामिल थीं. साहित्यकार डा सुधाकर अदीब की उपस्थिति में अंशुमा दुबे द्वारा प्रस्तुत वाणी वंदना से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ. इस दौरान दुबे ने अपनी पुस्तकों के प्रकाशकों को भी सम्मानित किया. इस अवसर पर नीलिमा टिक्कू के संपादन में डा अमिता दुबे पर केंद्रित विशेषांक का लोकार्पण भी हुआ. जिन पुस्तकों के प्रकाशकों का सम्मान इस आयोजन में हुआ, उनमें ‘व्यंजना सृजन की‘ एवं चेतें पिता दे‘ (डोंगरी) के प्रकाशक सर्वभाषा प्रकाशन के केशव मोहन पाण्डेय, ‘अमृतायन‘ उपन्यास के प्रकाशक आपस प्रकाशन के डा विन्ध्य मणि त्रिपाठी तथा ‘यादें पिता की‘ के प्रकाशक नवीन शुक्ल उपस्थित थे. पुस्तक चर्चा के दौरान ‘व्यंजना सृजन की‘ पर अपने विचार रखते हुए साहित्यसुधी ओम निश्चल ने कहा कि ये निबंध व्यक्ति व्यंजक भी हैं तथा वस्तुनिष्ठ भी. मुक्तिबोध पर शोध कार्य करने वाली विदुषी लेखिका अमिता दुबे इससे पूर्व अनेक स्त्री लेखकों और चिंतकों पर लिख चुकी हैं. उनकी समावेशी लेखनी जीवन के उदात्त विचारों को सदैव केंद्र में रखती आयी है, किसी विचारधारा विशेष को नहीं. इसलिए समाज और जीवन के लिए उपयोज्य हर रचनाकार को वे बहुत मान देती हैं, जिसने साहित्य को सदैव जीवन का संबल माना.
कथाकार संजीव जायसवाल संजय ने ‘अमृतायन‘ उपन्यास पर कहा कि डा अमिता दुबे बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार हैं. प्रस्तुत उपन्यास में उन्होंने कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों एवं क्रांतिकारियों की जीवनी एवं उनके संघर्ष को एक कथामाला में जोड़ते हुए उपन्यास के रूप में प्रस्तुत किया है. इसके साथ ही इसके लेखन में उन्होंने टेक्नोलाजी का भी भरपूर उपयोग किया है. इससे युवा पीढ़ी आसानी के साथ अपने को कथानक से जोड़ सकेगी. कवयित्री शोभा दीक्षित ‘भावना‘ ने ‘यादें पिता की‘ पर कहा कि इस पुस्तक की सभी कविताओं को पढ़ते हुए मैंने यही पाया कि डा अमिता दुबे का अध्ययन बहुत गहरा है. उन्होंने जो भी तथ्य समेटे हैं अपनी पुस्तक के जिन पात्रों के, वे पुराणों और प्राचीन ग्रन्थों से लिए हुए हैं, जो बहुत सारगर्भित और तथ्यपूर्ण हैं, साथ ही आने वाली पीढ़ियों के लिए सार्थक एवं उपयोगी सिद्ध होंगे. ‘कलम से क्रान्ति‘ पुस्तक पर अलका प्रमोद ने कहा कि यह संग्रह ऐसा ऐतिहासिक अभिलेख है, जो किशोर होते बच्चों को देश की स्वतंत्रता का मूल्य समझायेगा.‘ सुधाकर अदीब ने आलोक कुमार दुबे को शासकीय सेवा से सकुशल सेवानिवृत्ति की बधाई देते हुए उनकी कर्तव्यनिष्ठा, सेवा भावना की प्रशंसा की. साथ ही, उनके स्वस्थ दीर्घजीवी होने की कामना व्यक्त की. उन्होंने डा अमिता दुबे की सद्यः प्रकाशित छः पुस्तकों के लिए उन्हें भी साधुवाद दिया. इस अवसर पर नवीन शुक्ल, डा विन्ध्य मणि त्रिपाठी, केशव मोहन पाण्डेय ने भी अपने विचार व्यक्त किये. अभ्यागतों के प्रति आभार आलोक कुमार दुबे, कोषाध्यक्ष, साहित्य आराधन द्वारा व्यक्त किया गया. डा अमिता दुबे ने भी अपनी रचना यात्रा पर प्रकाश डाला.