नई दिल्ली: बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती पर साहित्य अकादेमी ने दलित चेतना कार्यक्रम का आयोजन किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रख्यात पंजाबी लेखक बलबीर माधोपुरी ने की और राजकुमार, रजत रानी मीनू, रजनी दिसोदिया और राजीव रियाज प्रतापगढ़ी ने अपनी-अपनी रचनाएं प्रस्तुत किए. सर्वप्रथम राजकुमार ने बाबा साहेब की अंग्रेजी में लिखी आत्मकथा का एक अंश प्रस्तुत किया. उसके बाद मराठी कवि नामदेव ढसाल और तेलुगु कवि की बाबा साहेब पर लिखी कविताओं के अंग्रेज़ी अनुवाद प्रस्तुत किए. रजत रानी मीनू ने ‘क्या मैं बता दूं‘ शीर्षक से कहानी प्रस्तुत की. इस कहानी में आज भी शिक्षित लोगों द्वारा दलित लोगों के प्रति अमानवीय भेदभाव का चित्रण किया गया था.
कार्यक्रम में रजनी दिसोदिया ने अपनी चार कविताएं प्रस्तुत की जिनके शीर्षक थे- शंबूक अट्टहास कर रहा है, एकलव्य, कहानी बहुत पुरानी है और पीढ़ियां सीढ़ियां होती हैं. सभी कविताओं का स्वर दलितों की सजगता को नए बिंबों में प्रस्तुत करने वाला था. राजीव रियाज प्रतापगढ़ी की गजलों और शेरों ने भी लोगों को ताली बजाने पर मजबूर किया. उनका एक शेर था, “पलकों में ही अपना अश्क सुखाना होता है, कुछ ख्वाबों को जिंदा ही दफनाना होता है…” एक अन्य शेर था, “जमाने तोड़कर तेरा हर दस्तूर जाऊंगा… नशे में चूर था मैं, नशे में चूर जाऊंगा…” अंत में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे बलबीर माधोपुरी ने अपने उपन्यास ‘मट्टी बोल पयी‘ के एक अंश का पाठ किया. उन्होंने सभी रचनाकारों को उत्कृष्ट रचनाओं की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि दलित लेखन में नारेबाजी नहीं बल्कि एक संतुलित सोच की जरूरत है. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के अध्यापक और छात्र-छात्राएं शामिल थे.