नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी ने स्वाधीनता दिवस एवं आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर पर ‘स्वतंत्रता का दर्शन‘ विषयक परिसंवाद का आयोजन किया. परिसंवाद में दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर पूरनचंद टंडन ने कहा कि स्वतंत्रता का रचनात्मक पक्ष सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष है और स्वतंत्रता समय सापेक्ष होती है. यह समय के संदर्भ में अपनी परिभाषाएं बदलती रहती है. हमारे यहां तो स्वतंत्रता को समीर कहा गया है जो कि हमें सुखद अनुभव देती है. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता विलक्षण और मूल्यवान धरोहर है, जिसका हमें संरक्षण करना चाहिए. प्रोफेसर चंदन कुमार चौबे ने कहा कि धर्म बोध एक ऐसा कारण है जिसके कारण हमारे देश की स्वतंत्रता हमेशा बची रही है. उन्होंने शिक्षा, साहित्य, संस्कृति और कला की स्वतंत्रता को चिह्नित करते हुए कहा कि स्वविवेक और स्वधर्म के बोध से ही हम संतुलन बनाए रख सकते हैं. वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी राजेश प्रताप सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता का मतलब स्वच्छंदता नहीं है यानी स्वतंत्रता अपने साथ कुछ कर्तव्य बोध भी लेकर आती है जिसका हमें परिपालन करना जरूरी है. साहित्यकार एवं प्रोफेसर अल्पना मिश्र ने कहा कि स्वस्थ्य समाज के लिए सकारात्मक स्वतंत्रता जरूरी है. उन्होंने विवेक और स्व-नियंत्रण की बात भी की. उन्होंने भेदभाव की विसंगतियों से मुक्त स्वाधीनता को सच्ची स्वतंत्रता कहा. उन्होंने साहित्य की भूमिका को भी रेखांकित किया.
वरिष्ठ पत्रकार प्रताप सोमवंशी ने कहा कि स्वतंत्रता का अर्थ सबके लिए अलग-अलग होता है. हमारे स्व की पहचान क्या है यह सबसे महत्त्वपूर्ण है. उन्होंने अदम गोंडवी के एक शेर का जिक्र करते हुए अपनी बात को और विस्तार दिया. वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय ने कहा कि स्वतंत्रता का जो पश्चिमी दर्शन है वह हमसे अलग है, लेकिन काफी समय तक उसी के आधार पर उसको परिभाषित करने के कारण असमंजस की स्थिति बनी है. सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात शायर चंद्रभान ख्याल ने कहा कि आजादी का तस्सवुर हमारे धर्म और संस्कृति में बहुत पहले से रहा है और समय-समय पर उसका रंग रूप बदलता रहा है. उन्होंने 1857 की लड़ाई को महत्त्वपूर्ण मानते हुए कहा कि हमारा स्वतंत्रता आंदोलन एक केंद्रीय लड़ाई थी जिसमें पूरे देश ने भाग लिया. कार्यक्रम के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव डा के श्रीनिवास राव ने सभी का स्वागत अंगवस्त्रम देकर किया. उन्होंने स्वागत वक्तव्य में कहा कि दर्शन का मूल कार्य उस प्रणाली को ढूंढना है जिससे हम उसको सरल रूप में परिभाषित कर सकें. स्वतंत्रता हमारे लिए प्रासंगिक रहे और उसके नए संदर्भ हमारे सामने आएं इसलिए इस विषय का चयन किया गया. कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लेखक, विद्वान, शोधार्थी और विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राएं उपस्थित थे. कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी के संपादक- हिंदी अनुपम तिवारी ने किया.