नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी ने फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया, जिसका शीर्षक था ‘भारत का विचार‘. इस विचार गोष्ठी में साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष मिलिंद सुधाकर मराठे, अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा तथा अकादेमी के सामान्य परिषद के सदस्य नरेंद्र बी पाठक ने भाग लिया. साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि इतिहास में भारत के बारे में लोगों के अलग-अलग विचार थे. प्रकाशन और अनुवाद में व्यापक तेज़ी आने के बाद भारत की वास्तविक छवि दुनिया के सामने आई है. अन्य वक्ताओं ने भी कहा कि भारत के बाहर के लोगों ने विभिन्न देशों के इतिहास की पुस्तकों, यात्रा वृतांतों, दार्शनिक साहित्य आदि के माध्यम से भारत के बारे में जानकारी प्राप्त की जो असलियत से दूर थी. अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने कहा कि भारत के बारे में विचार विभिन्न तरीकों से साहित्यिक रचनाओं में परिलक्षित हुए हैं, जो ज्यादा विश्वसनीय हैं. उन्होंने कहा कि न केवल विदेशी बल्कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों के लोगों के भी सदियों से भारत के बारे में अलग-अलग विचार थे.
साहित्य अकादेमी ने इससे पहले ‘भारतीय साहित्य की विरासत‘ शीर्षक से एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया था. इस गोष्ठी में माधव कौशिक ने भारतीय साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अभी हमारे धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों को छोड़कर अधिकांश भारतीय साहित्य का दुनिया की अन्य भाषाओं में अनुवाद नहीं हुआ है, जो की बेहद ज़रूरी है और यह हमारी प्राथमिकताओं में शामिल है. मिलिंद सुधाकर मराठे ने भारतीय साहित्य की प्राचीनता, उसकी समृद्धता और उसकी विविधता की चर्चा करते हुए उसे समावेशी साहित्य का अन्यतम उदाहरण बताया. कुमुद शर्मा ने कहा कि भारतीय साहित्य की उत्कृष्टता से दुनिया को परिचित के लिए विभिन्न भारतीय भाषा में उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता के तहत ही हम इस पुस्तक मेले में शामिल हुए हैं. श्रीनिवासराव ने कहा कि भारतीय साहित्य केवल भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरी पृथ्वी की भलाई की कामना करता है. श्रीनिवासराव ने बताया कि अभी तक न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका कनाडा, चीन और बांग्लादेश के प्रतिनिधियों ने साहित्य अकादेमी की पुस्तकों के अनुवाद में रुचि दिखाई है. कुछ पोलिश और इजरायली भाषा के प्रकाशकों ने भी संपर्क किया है.