नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी ने अंग्रेजी और ओड़िया के प्रख्यात कवि एवं साहित्य अकादेमी के महत्तर सदस्य जयंत महापात्र की स्मृति में आभासी मंच पर एक शोक सभा आयोजित की. शोक सभा के आरंभ में साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने अंग्रेजी में भारतीय कविता की परंपरा और उसमें जयंत महापात्र के महत्त्वपूर्ण योगदान को याद करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने साहित्य अकादेमी के साथ महापात्र के गहरे और आत्मीय संबंधों के बारे में बात की और कहा कि उन्होंने साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में भाग लेने के अनुरोध को कभी भी अस्वीकृत नहीं किया. याद रहे कि 27 अगस्त को महापात्र का निधन हुआ था. इस आयोजन में विभिन्न भारतीय भाषाओं के कवियों, विद्वानों और लेखकों ने दिवंगत कवि के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की. मालाश्री लाल ने अंग्रेजी में भारतीय कविता के परंपरा में महापात्र के अनूठे स्थान पर विस्तार से बताया. सुकृता पॉल कुमार ने जयंत महापात्र को याद करते हुए कहा कि एक कवि के रूप में उन्होंने अपनी मातृभाषा ओड़िया और अंग्रेजी में भी गहरी छाप छोड़ी. उन्होंने उनकी एक कविता ‘प्लेइंग द मैजिशियन‘ का जिक्र किया और एक जादूगर की भूमिका निभाने की उनकी क्षमता के बारे में बात की. हरीश त्रिवेदी ने कहा कि जयंत महापात्र ऊंचे कद के कवि थे, जो बहुत ही विनम्र और जमीन से जुड़े हुए लेखक थे. महापात्र हमेशा युवा कवियों की कविताओं का अनुवाद करने के लिए उत्साहित रहते थे.
अरुण कमल ने यह कहते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की कि जयंत महापात्र एकमात्र भारतीय कवि थे जिन्होंने गरीबों, आदिवासियों, जंगलों की सुंदरता और अपने आसपास की उन चीजों के बारे में अंग्रेजी में कविताएं लिखीं, जिनसे उन्हें प्यार था. ममंग दई ने उनकी कविता धारणा को अलग और बेहद निजी होने को याद करते हुए अपनी श्रद्धांजलि दी. भौतिकी के प्रोफेसर होने के नाते, भौतिकी और कविता के बीच के अदृश्य संबंधों की तरफ भी उन्होंने ध्यान दिलाया. डेसमंड खमाफ्लाग ने एक गीत के रूप में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की, जिसका शीर्षक था, ‘सेलिंग‘. इसे उन्होंने अपने कुछ छात्रों के साथ प्रस्तुत किया. गौरहरि दास ने याद किया कि कैसे जयंत महापात्र ने 38 साल की उम्र में में देर से कविता लिखना शुरू किया. उन्होंने जयंत महापात्र की कविता की कुछ पंक्तियों का भी पाठ किया. सुबोध सरकार ने ‘जयंत दा‘ नामक एक बहुत ही छोटी कविता के रूप में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की. चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि कवि के रूप में जयंत महापात्र की जड़ें कटक और भुवनेश्वर में गहराई से जुड़ी हुई थीं. जितेंद्र कुमार नाइक ने जयंत महापात्र के साथ एक सहयोगी के रूप में अपनी कॉलेज की यादें साझा कीं. उन्होंने जयंत महापात्र की भौतिकी प्रोफेसर से लेकर एक अंग्रेजी कवि और एक कवि से अनुवादक के रूप में प्रतिष्ठित होने की यात्रा के बारे में बात की. साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने उन्हें ‘भारतीय कविता का पितामह‘ और ‘मिट्टी का सच्चा पुत्र‘ कहा. उन्होंने कहा कि जयंत महापात्र द्वारा इस्तेमाल किए गए रूपकों और कल्पना ने कैसे उनकी कविताओं को एक दृश्यात्मक अपील प्रदान की.