नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी से सम्मानित हिंदी और मैथिली की प्रख्यात कथाकार, कवयित्री, नाटककार और लेखिका उषाकिरण खान के निधन पर साहित्य जगत मर्माहत है. साहित्य अकादेमी ने भी गहरा शोक व्यक्त किया है. साहित्य अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव द्वारा जारी शोक संदेश में कहा गया है कि प्राचीन और आधुनिक कालखंड के जनजीवन और संस्कृति के उत्थान-पतन की गाथा को ऐतिहासिक दृष्टि से प्रस्तुत करने वाली उषाकिरण खान के व्यक्तित्व पर अपने स्वतंत्रता सेनानी गांधीवादी पिता के संस्कारों का गहरा प्रभाव पड़ा. उन्हें हजारी प्रसाद द्विवेदी और नागार्जुन जैसे साहित्यकारों का स्नेह और सान्निध्य प्राप्त हुआ. आपने संस्कृत, पालि, अंग्रेजी, मैथिली एवं हिंदी के प्राचीन साहित्य का गहन अध्ययन किया था. आप बीडी कालेज पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास और पुरातत्त्व विभाग की अध्यक्ष रहीं. कई विधाओं में बहुआयामी लेखन करने वाली उषाकिरण खान के हिंदी-मैथिली में 17 से अधिक उपन्यास सात कहानी संकलन, नौ काव्य-संग्रह, बाल साहित्य की पांच पुस्तकें, कथेतर साहित्य की तीन पुस्तकें और चार मैथिली नाटक भी चर्चित रहे हैं.

हिलाओं की समानता की गहरी पक्षधर रहीं उषाकिरण खान का यही सबल स्वत्व बोध उनके रचनात्मक व्यक्तित्व को विशेषता प्रदान करता है. उनके लेखन में मिथिला का इतिहास, कला, संस्कृति और समाज का सौंदर्य भी दिखता था. उद्दाम प्रेम के साथ स्थानीयता उनके कथानक, कहानियों और उपन्यासों का मूल बोध रहे. ‘पानी पर लकीर’, ‘फागुन के बाद’, ‘सीमांत कथा’, ‘रतनारे नयन’, ‘अंगन-हिंडोला’, ‘अनुत्तरित प्रश्न’, ‘हसीना मंजिल’, ‘भामती’, ‘सिरजनहार’ के अलावा कहानी संग्रह ‘गीली पॉक’, ‘कासवन’, ‘दूबजान’, ‘विवश विक्रमादित्य’, ‘जन्म अवधि’, ‘घर से घर तक’, ‘कॉचहि बॉस’ नाटक ‘कहाँ गए मेरे उगना’, ‘हीरा डोम’, ‘फागुन’, ‘एकसरि ठाढ़’, ‘मुसकौल बला’; बाल नाटक ‘डैडी बदल गए हैं’, ‘नानी की कहानी’, ‘सात भाई और चंपा’, ‘चिड़िया चुग गई खेत’, ‘घंटी से बान्हल राजू’, ‘बिरड़ो आबिगेल’ और बाल उपन्यास ‘लड़ाकू जनमेजय’ आदि से हिंदी और मैथिली साहित्य में अपनी अलग पहचान बना लेने वाली हमारे दौर की महत्त्वपूर्ण कथाकार उषाकिरण खान को पद्मश्री अलंकरण के अलावा बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का हिंदी सेवी पुरस्कार, बिहार राजभाषा का महादेवी वर्मा पुरस्कार, कुसुमांजलि पुरस्कार, भारत भारती पुरस्कार तथा मैथिली भाषा में साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उषाकिरण खान का समृद्ध कृतित्व भारतीय साहित्य की पूंजी है.