मुंबई: हिंदी, उर्दू के चर्चित साहित्यकार और शिक्षाविद सलाम बिन रज्जाक नहीं रहे. उनका असली नाम शेख अब्दुस्सलाम अब्दुर्रज्जाक था. रज्जाक 83 वर्ष के थे. ‘नंगी दोपहर का सिपाही‘, ‘मुअब्बिर‘ और ‘जिंदगी अफसाना नहीं‘ जैसी साहित्यिक कृतियों अपनी विशेष पहचान बनाने वाले रज्जाक को 2004 में उनके प्रशंसित कथा संग्रह ‘शिकस्ता बटन के दरमियान‘ के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार से नवाजा गया था.
साल 1941 में रायगढ़ जिले के पनवेल में रज्जाक का हुआ था. उन्होंने आम जनता की कठिनाइयों और कष्टों से गहराई से समझा और उसे अपनी रचनाओं में जगह दी, उसे लफ्जों में ढाला था. उनकी प्रतिभा उनके गद्य और पद्य दोनों में परिलक्षित होती थी. रज्जाक की साहित्यिक कृतियों के वे पात्र काफी लोकप्रिय हुए थे, जो आसपास के ऐसे आम लोगों पर आधारित थे, जो जीवित रहने की कोशिश में संघर्ष करते हुए अपनी समस्याओं का न केवल सामना करते थे, बल्कि उन पर विजय प्राप्त करते थे.
1970 के दशक में रज्जाक की प्रासंगिकता तब बढ़ी, जब उर्दू कथा साहित्य की लोकप्रियता कम हो रही थी. उनकी चार दर्जन से अधिक कहानियां आल इंडिया रेडियो पर प्रसारित की गईं, जबकि उनमें से एक दर्जन से अधिक स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय के छात्रों के पाठ्यक्रम में शामिल हैं. शुरुआती दौर में नवी मुंबई में एक नगरपालिका स्कूल शिक्षक के रूप में काम करने के दौरान ही रज्जाक के तीन प्रमुख संग्रह प्रकाशित हुए, जिनमें से दो उर्दू में और एक हिंदी में था. इतिहासकार होने के अलावा रज्जाक जानेमाने अनुवादक भी थे. उन्होंने मराठी कथाओं का उर्दू में अनुवाद भी किया था. छह दशक से अधिक के साहित्यिक जीवन में रज्जाक को साहित्य अकादेमी पुरस्कार, ग़ालिब पुरस्कार, महाराष्ट्र उर्दू साहित्य अकादमी पुरस्कार और कई अन्य सम्मानों से सम्मानित किया गया था. हिंदी और उर्दू साहित्य जगत, शिक्षाविदों और गणमान्य लोगों ने रज्जाक के निधन पर शोक व्यक्त किया है.