अजमेर: स्थानीय माकड़वाली रोड स्थित चारण शोध संस्थान में आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत एक साहित्य समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें स्वामी दयानंद सरस्वती का स्वतंत्रता संग्राम में मार्ग दर्शन और चारण कवि श्यामलदास, कृष्ण सिंह बारहठ, मनीषी समर्थदान, उमरदान लालस व फतहकरण के योगदान पर संगोष्ठी हुई. इस गोष्ठी में पद्मश्री से सम्मानित डॉ सीपी देवल ने विस्तार से अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद और मारवाड़ के चारण कवियों के बीच बहुत तालमेल रहा. स्वामी दयानंद के कारण ही चारणों का पुनर्जागरण हो सका. उन्होंने बताया कि मारवाड़ के शासक सज्जन सिंह की पहल पर स्वामी दयानंद और चार विद्वानों के बीच शास्त्रार्थ हुआ. महाराजा की ओर से चार सदस्यों में चारण कवि कृष्ण सिंह बारहठ भी शामिल थे. इस शास्त्रार्थ के बाद ही राजस्थान में खासकर मारवाड़ में स्वामी दयानंद का आगमन हुआ. इस शास्त्रार्थ में कृष्ण सिंह बारहठ ने जो सवाल किए उससे स्वामी दयानंद भी प्रभावित हुए. इसके बाद स्वामी दयानंद से कई चारण कवि जुड़े. इनमें श्यामलदास भी शामिल रहे. उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद ने सनातनियों को भी एकजुट करने का काम किया. स्वामी दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश लिखा तो कृष्ण सिंह बारहठ ने सच्चा इतिहास लिखा. इसे संयोग ही कहा जाएगा कि परोपकारिणी सभा और राजपूत चारण हितकारिणी सभा एक साथ बनी. उन्होंने कहा कि आमतौर पर यह माना जाता है कि चारण कवियों ने राजपूत राजा महाराजाओं का बलिदान करवाया. लेकिन बलिदान तो चारण जाति के लोगों ने भी किया है. इतिहास में चारण महिलाओं के जौहर को कम आंका गया है. जिन चारण महिलाओं ने अपने देश की खातिर जौहर किया उनके आज मंदिर बनवाने की जरूरत है. देवल ने कहा कि चारण शोध संस्थान और परोपकारिणी सभा ने इतिहास को नए सिरे से प्रस्तुत करने का जो बीड़ा उठाए है उसमें चारण महिलाओं के जौहर का उल्लेख भी होना चाहिए. आज समाज में तीसरी क्रांति की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इतिहास में 1857 की क्रांति को याद किया जाता है. लेकिन राजस्थान में अंग्रेजों के खिलाफ 1804 में ही चारण कवियों ने बिगुल बजा दिया था. तब हिन्दू और मुसलमान दोनों को ही एक साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए चारण कवियों ने प्रेरित किया. 1804 का यह इतिहास अजमेर के चारण शोधन संस्थान में उपलब्ध है.

स्वामी दयानंद और उमरदान लालस के बारे में चारण विद्वान गिरधर दान रत्नू ने अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारी दी. उन्होंने बताया कि दयानंद के प्रभाव में आने के बाद ही लालस ने आर्य समाज को स्वीकारा. लालस ने चारणों की बुराइयों पर भी तीखी कविताएं लिखी हैं. क्योंकि लालस बहुत विद्वान थे, इसलिए स्वामी दयानंद को लाने के लिए उन्हें ही भेजा गया. यह कवि लालस की निडरता ही थी कि अंग्रेजों की सत्ता की तुलना डाकन से की. चारण साहित्य शोध संस्थान और स्वामी दयानंद की परोपकारिणी सभा के बीच चारण साहित्य को लेकर जो तालमेल हुआ, उसमें राज्यसभा के पूर्व सांसद ओंकार सिंह लखावत की प्रभावी भूमिका है. चारण कवियों के लेखन को लखावत ने ही राजस्थान और गुजरात में घूम घूम कर एकत्रित किया और तभी 1983 में अजमेर में चारण शोध संस्थान की स्थापना की. तब से आज तक लखावत चारण साहित्य को लेकर सक्रिय हैं. मौजूदा समय में इस संस्थान के अध्यक्ष सेवानिवृत्त आईएएस भंवर सिंह चारण हैं और लखावत साहित्य शाखा के प्रभारी की भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने इस बात पर संतोष जताया कि चारण साहित्य को पढ़कर अनेक युवा पीएचडी कर रहे हैं. समारोह में चारण साहित्य पर पीएचडी करने वाले राजेंद्र सिंह बारहठ, प्रकाश अमरावत, नवघणभाई ओडेदरा, तीर्थकरदान रत्नूदान रोहडिय़ा, किशोरदान गढवी, देवेंद्र गढवी, नरेंद्र सिंह चारण, प्रवीण भाई सांजवा, कौशिक कुमार एन पंड्या, विमलदान बाटी, पूनाराम, मनोहर सिंह चारण, कविता पालावत, किरण देवल, मक्खनलाल वर्मा, वीणा पुरोहित, सीमन्तिनी पालावत, शेफालिका पालावत, गीतकार वासुदेव सिंह महियारिया, संगीत व स्वर कुमारी लीला रत्नू शोधकर्ताओं को सम्मानित किया. समारोह में शोध संस्थान के अध्यक्ष भंवर सिंह चारण ने कहा कि संस्थान का प्रयास है कि सभी चारण परिवारों के घर पर चारण साहित्य उपलब्ध हो. इसके लिए एक योजना भी बनाई गई है. उन्होंने कहा कि चारण साहित्य का महत्त्व इसी से समझा जा सकता है कि रामचरित मानस में भी चारणों का उल्लेख है.

समारोह में स्वामी दयानंद सरस्वती उत्तराधिकारी परोपकारिणी सभा के मंत्री आचार्य सत्यजीत और चारण शोध संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष ओंकार सिंह लखावत उपस्थित थे. आचार्य सत्यजीत ने कहा कि स्वामी दयानंद और चारण कवियों के बीच उस समय जो पत्र व्यवहार हुआ वह दुर्लभ साहित्य आज भी हमारे पास सुरक्षित है. समारोह में शोध संस्थान के अध्यक्ष और राजस्थान के पूर्व सांसद ओंकार सिंह लखावत ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में स्वामी दयानंद की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है. स्वामी का कामकाज चारण कवियों के साथ भी रहा है. अब यदि परोपकारिणी सभा और शोध संस्थान तब के लेखन को प्रकाशित करता है, तो स्वतंत्रता आंदोलन में राजस्थान की नई भूमिका देखने को मिलेगी. लखावत ने परोपकारिणी सभा के सहयोग के लिए आचार्य सत्यजीत का आभार जताया है. समारोह में संस्थान के कोषाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह चारण ने बताया कि हाल ही में संस्थान भवन के जीर्णोद्धार का जो काम कराया गया है उसका छह लाख रुपया बकाया है. यानी छह लाख रुपए की उधार चुकानी है. इस पर एडवोकेट भगवती सिंह बारहठ ने सात लाख रुपए का चेक समारोह में ही दे दिया ताकि कोई यह नहीं कह सके कि चारणों पर उधारी है. बारहठ की इस पहल का लखावत ने भी स्वागत किया. समारोह में अखिल भारतीय चारण गढवी महासभा के अध्यक्ष सीडी देवल भी उपस्थित रहे. समारोह का संचालन संस्थान की महामंत्री डॉ सरोज लखावत ने किया. जबकि उपाध्यक्ष मदन दान सिंह ने सभी का आभार जताया.