धर्मशाला: “शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो विद्यार्थियों को शिक्षित करने के साथ-साथ उनको आत्मनिर्भर बनायेउनके चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करे. चरित्र से रहित ज्ञान को महात्मा गांधी ने पाप का दर्जा दिया है. शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों में अपनी संस्कृतिपरंपरा एवं सभ्यता के प्रति जागरूकता लाना भी है.” यह बात राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहीं. उन्होंने कहा कि इस दृष्टि से एक शिक्षक का कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण है. आपका कार्यक्षेत्र सिर्फ अध्यापन तक ही सीमित नहीं हैआपके हाथों में राष्ट्र के भविष्य-निर्माण का बड़ा कर्तव्य है. राष्ट्रपति मुर्मु ने गुरुदेव टैगोर को याद करते हुए कहा कि कवि शिरोमणि रवीन्द्रनाथ टैगोर जितने महान कवि और संगीतकार थेउतने ही महान शिक्षाविद एवं शिक्षक भी थे. इसलिए उन्हें गुरुदेव भी कहा जाता है. उनका मानना था कि प्रकृति विद्यार्थियों की सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है. हिमाचल प्रदेश की धरती अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जानी जाती है. ऐसे सुंदर प्रदेश में संचालित इस विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करना आपके लिए सौभाग्य की बात है.

राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर अच्छाई और बुराई दोनों की संभावनाएं होती हैं. मैं चाहती हूं कि आप सभी विद्यार्थी कितनी भी मुश्किल परिस्थिति में होंबुराई को कभी भी हावी न होने दें. बुराई का मार्ग कितना भी सुगम क्यों न होहमेशा अच्छाई का ही पक्ष लें. करुणाकर्तव्यनिष्ठा और संवेदनशीलता जैसे मानवीय मूल्यों को अपने जीवन का आदर्श बनाएं. इन मूल्यों पर आधारित आपका जीवन सफल होने के साथ-साथ सार्थक भी होगा. राष्ट्रपति ने कहा कि परिवर्तनप्रकृति का नियम है. अतीत में परिवर्तन की गति इतनी तीव्र नहीं थी. आज हम चौथी औद्योगिक क्रांति के दौर में हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसमशीन लर्निंग जैसे नए क्षेत्र तेजी से उभर रहे हैं. परिवर्तन की गति एवं प्रभाव दोनों आज बहुत ज्यादा हैं. जिसकी वजह से तकनीक एवं आवश्यक योग्यता में बहुत तेजी से बदलाव आ रहे  हैं. इक्कीसवीं सदी के आरंभ में कोई नहीं जानता था कि तब से 20 या 25 साल बाद लोगों को किस तरह के कौशल की आवश्यकता होगी. इसलिए हमारा ध्येय फ्लैक्सिबल माइंड विकसित करने पर होना चाहिए. जिससे हमारी युवा पीढ़ी तेजी से हो रहे बदलावों के साथ सामंजस्य बना के रख सके. उन्होंने कहा कि हमारा ध्यान ‘क्या सीखना है‘ के साथ-साथ ‘कैसे सीखना है‘ पर भी होना चाहिए.