भोपाल: “भारतीय साहित्य में धार्मिक, सांस्कृतिक, और दार्शनिक विचारों का विशेष महत्त्व है. भारतीय साहित्य केवल मनोरंजन ही नहीं करता, बल्कि यह जीवन शैली को भी बदल देता है. भारतीय साहित्य में राष्ट्र का स्वर उद्घाटित होता है.” मध्य प्रदेश की महिला बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया ने राष्ट्रीय महिला साहित्यकार सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह बात कही. उन्होंने कहा कि हमें भारत जैसे महान देश का निवासी होने और भारतीय संस्कृति को आत्मसात करने का गर्व है. राष्ट्र गौरव का भाव भारतीय दृष्टि की विशेषता है. उन्होंने कहा कि हमारा देश सांस्कृतिक विविधता लिए हुए हैं इसलिए साहित्य को किसी एक भाषा में चिन्हित नहीं किया जा सकता. हमारे साहित्यकारों ने संस्कृत, हिन्दी, मराठी, तमिल, बंगाली, उर्दू, गुजराती, और अन्य भारतीय भाषाओं में साहित्य रचा है और लगभग हर भाषा में महिला साहित्यकारों ने अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई है. मंत्री भूरिया ने कहा की भारतीय साहित्य में विश्व बंधुत्व, सामाजिक न्याय और समानता का स्वर है. इसे लोगों तक पहुचाने में धार्मिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक साहित्य का योगदान रहा है. रचनाकारों ने साहित्य को हमारे समक्ष अनेक विधाओं में प्रस्तुत किया है. सभी तरह की शैली गद्य, पद्य और कविताओं के माध्यम से जटिल से जटिल विषयों को समझाने का प्रयास किया जाता है यही साहित्य की खूबसूरती है. उन्होंने कहा की आज के दौर में जब कुछ भी और कैसा भी साहित्य छप रहा है. ऐसे में इस कार्यक्रम के आयोजक प्रकाशन ने न केवल अपनी गुणवत्ता को बनाये रखा वरन राष्ट्रवादी साहित्य और संस्कृति को संजोये रखने वाले साहित्य के लिए कोई समझौता नहीं किया. भारतीय संस्कृति को सहेजने और संवारने का जो कार्य इस प्रकाशन ने किया है उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाये उतनी कम है.

मंत्री भूरिया ने कहा कि आदिकाल से ही विदुषियों की पद्य, सूक्तियां आदि हमारे वेद पुराणों में है. अगर हम ऋग्वेद देखें तो सत्ताइस महिला रचनाकार थी जिन्होंने सुंदर सूक्तों की रचनाएँ की है. ऐसा कोई भी प्राचीन ग्रंथ नहीं है, जिसमें महिला साहित्यकार का उल्लेख न हो. गार्गी और मैत्रेयी, लोपामुद्रा, अदिति महान दार्शनिक वैदिक ऋचाओं की दृष्टा और व्यख्याता थीं. आज पूरे देश से पधारी महिलाएं ‘विश्वम्भरा’ में ‘साहित्यिक सृष्टि-भारतीय दृष्टि’ पर मंथन व चिंतन करने आईं हैं. मैं सभी प्रतिभागियों का प्रदेश सरकार की ओर से हार्दिक अभिनंदन करती हूं. यहां पधारीं देश भर की महिला साहित्यकारों के लिए यह उत्कृष्ट समागम है जहां वैचारिक समानता देखी जा सकती है. आज के दौर में जब मोबाइल संस्कृति ने पुस्तकों के पढ़ने और लिखने को कुछ हद तक प्रभावित किया है, ऐसे में इस प्रकार के सम्मेलन सुखद अनुभव देते हैं. भूरिया ने कहा कि साहित्य रचना में बाजारवाद के प्रभाव को समझना भी एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि साहित्य को समझने में युवा पीढ़ी का रुझान कम है. इसलिए बाजार में साहित्यिक विषयों की किताबों की डिमांड कम होती है. आज के युग में युवाओं की सोच को समझते हुए हमारे साहित्यकार रचना को लिपिबद्ध करेंगे तो यही युवा इन किताबों को हाथों-हाथ लेंगे. राजधानी भोपाल में अर्चना प्रकाशन ने इस सम्मेलन का आयोजन किया था.