नई दिल्ली: राजकमल प्रकाशन एवं तक्षशिला एजुकेशन सोसायटी के संयुक्त तत्वावधान में ‘सतरंगी दस्तरख्वान- बहुसांस्कृतिक जीवन और खानपान‘ पुस्तक का लोकार्पण स्थानीय कांस्टीट्यूशन क्लब में हुआ. इस पुस्तक का संपादन सुमना रॉय व कुणाल रे ने किया है. हिंदी में अनुवाद वंदना राग व गीत चतुर्वेदी ने किया है. लोकार्पण के बाद ‘आन ईटिंग‘ के सुमना रॉय, कुणाल रे, ज्ञानपीठ सम्मानित कोंकणी लेखक दामोदर मावजो, प्रसिद्ध गायिका कलापिनी कोमकली, नाट्यकर्मी नीलम मानसिंह चौधरी, आशुतोष भारद्वाज एवं अनुवादक वंदना राग ने अपने विचार व्यक्त किए. कलापिनी कोमकली ने इस अवसर पर कहा कि कोविड का दौर था हम सब अपने घरों में कैद थे. मुझे कुणाल का कॉल आया कि क्या मैं अपने जीवन से जुड़े खानपान को लेकर कुछ लिखना पसंद करूंगी? यहां यह स्पष्ट कर दूं की भोजन विधि नहीं बतानी थी, बल्कि खानपान से जुड़े रोचक प्रसंग और आदतों का महत्व था. मैंने ‘भानुकुल का रसोई राग‘ शीर्षक से अपनी बात लिखी. कोमकली ने पुस्तक से एक रोचक अंश का पाठ भी किया और अपने पिता कुमार गंधर्व के खानपान से जुड़े कुछ किस्से भी साझा किए. दामोदर मावजो ने किताब में अपने योगदान के अनुभव को साझा किए और ब्रेड के भारत आने, उसके लोकप्रिय होने के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डाला.
नीलम मान सिंह ने कहा कि मैं रोटी बनाने की प्रक्रिया से बहुत आश्चर्यचकित थी… बीज पीसने से लेकर आटे में पानी मिलाने तक….उन्होंने खाना पकाने की तुलना थिएटर से की और कच्चे पकौड़े या कच्ची जलेबी परोसना कच्चा नाटक परोसने जैसा बताया. संपादक कुणाल रे ने कहा कि मैं और सुमना खाने के बहुत शौकीन हैं. कोविड के दौरान भी हम एक-दूसरे से बात करते रहते थे और बातें खाने की ही होती थीं… यहीं से हमने आन ईटिंग ब्लॉग शुरू किया जो आज किताब के रूप में आपके सामने है. सुमना राय ने कहा कि हिंदी किताब के लिये हम बहुत उत्साहित थे. जो कहानियां लोगों की पहुंच से दूर थीं वे इस किताब के माध्यम से अब उन लोगों के लिए भी उपलब्ध हैं. ‘रस‘ की व्याख्या करते हुए उन्होंने भाषा और भोजन की विविधता का हवाला दिया और कहा कि इन दोनों की एक ही ज़मीन है- हमारी जीभ. आशुतोष भारद्वाज ने पत्रकारिता के दौरान नक्सलियों के साथ बिताए समय और उनके खाने के बारे में अनुभव साझा किये. पुस्तक की अनुवादक कथाकार वंदना राग ने कहा कि इस किताब में खाने के बहाने दुख, दर्द और खुशियां बयान की गयी हैं. ‘ट्रांसलेशन क्लोज़ टू द ओरिजिनल‘ होना चाहिए. इस किताब के लिये बहुत सारे क्षेत्रों के स्थानीय एथोस को हिंदी में लाना एक बड़ा चेलेंज था मगर इसमें मजा आया. अंत में राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने पुस्तक के संपादकों, लेखकों और उपस्थित श्रोतागण का धन्यवाद किया.