हरिद्वार: पतंजलि योगग्राम में संत सुभद्रा माता जिन्हें उनके प्रशंसक तपोवनी मां के नाम से पुकारते थे की आध्यात्मिक जीवन यात्रा पर प्रकाशित पुस्तक ‘समुद्र से हिमशिखर‘ तक के कन्नड़ और अंग्रेजी में अनूदित संस्करणों का विमोचन संपन्न हुआ. इससे पहले हिंदी में प्रकाशित पुस्तक का विमोचन भी स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने ही किया था. पुस्तक के लेखक शैलेंद्र सक्सेना हैं. पुस्तक का कन्नड़ अनुवाद डा भास्कर रमैया और अंग्रेजी अनुवाद स्वर्णगौरी और अनिता विमला ब्रैग्स ने किया गया है. तपोवनी संत सुभद्रा माता चैरिटेबल ट्रस्ट के सदस्यों की उपस्थिति में स्वामी रामदेव ने पुस्तक का विमोचन किया. स्वामी रामदेव ने कहा कि तीन दशक पूर्व तपोवन हिमालय पहुंचने पर पहली बार उन्हें संत सुभद्रा माता के दर्शन कर उनसे आशीर्वाद लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. तपोवनी मां हिमालय की एक ऐसी विलक्षण संत हैं, जिनका जन्म तो दक्षिण भारत में हुआ परन्तु साधना दुर्गम बर्फीले हिमालय क्षेत्र तपोवन में हुई.
उडुपी, कर्नाटक पेजावर मठ के विश्व प्रसिद्ध संत विश्वेश्वर तीर्थ स्वामी से संन्यास दीक्षा लेने के बाद उन्होंने अपना जीवन मानव मात्र की सेवा में लगा दिया. माता सुभद्रा के ब्रह्मलीन होने के बाद साधना और सेवा के जो बीज उनके द्वारा डाले गये थे. आज वो हरे भरे वृक्ष बनकर समाज में लहलहा रहे हैं. कर्नाटक की तीर्थ नगरी उडुपी में जन्मी तपोवनी मां के नाम से विख्यात संत सुभद्रा माता दुनिया की एक मात्र संत है जिन्होंने उत्तराखंड के हिमशिखर गौमुख ग्लेशियर से ऊपर तपोवन में लगातार नौ वर्ष रहकर साधना की, जहां छह महीने केवल बर्फ रहती है, आने जाने के सभी रास्ते बंद हो जाते हैं और कई दिनों तक सूरज तक नहीं दिखाई देता. ऐसी विषम परिस्थितियों में अच्छे बुरे दौर से गुजरकर, स्त्री शरीर की मान मर्यादा की रक्षा करते हुए तमाम पड़ाव पार कर कठिन तपस्या के बाद वह नीचे उतरीं और गंगोत्री के पास धराली एवं गंगोरी में साधना के साथ सेवा कार्य करने लगीं. जीवन के नौवें दशक में भक्तों के आग्रह पर इस पुस्तक के लिए उन्होंने अपना आशीर्वाद दिया. पुस्तक के अंतिम अध्याय में तपोवनी मां के संपर्क में रहे हिमालय के तपस्वी संतों के अनुभव, पाठकों की आंतरिक दृष्टि विकसित कर उस सत्य का साक्षात्कार कराते हैं, जिसे हमारी सामान्य आंखें नहीं देख पातीं.