रायपुर: गुलाल वर्मा के निबंध संग्रह ‘का कहिबे‘ का विमोचन और ‘माध्यम भाषा छत्तीसगढ़ी‘ विषय पर एक संगोष्ठी स्थानीय सिविल लाइंस में संपन्न हुई. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा परदेशीराम वर्मा थे. यह आयोजन वैभव प्रकाशन और अगास दिया परिवार के संयुक्त तत्वावधान में मोर चिन्हारी छत्तीसगढ़ी संस्था के सहयोग से हुआ था. इस अवसर पर डा वर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ी के साथ निरंतर अन्याय हो रहा है और यह आज तक माध्यम भाषा नहीं बन पाई है. अध्यक्षता वरिष्ठ छत्तीसगढ़ी सेवी नंदकिशोर शुक्ल ने की. इस अवसर पर गुलाल वर्मा का सम्मान करते हुए अतिथियों ने उनकी पुस्तक का विमोचन करते हुए कहा कि यह कृति छत्तीसगढ़ी गद्य को समृद्ध करती है. लेखक ने अपने समय के सभी सरोकारों पर चिंतन के साथ कार्य किया है. संयोजक डा सुधीर शर्मा ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होने के बाद भी छत्तीसगढ़ी को प्राथमिक स्तर पर माध्यम भाषा नहीं मानना एक सामाजिक अपराध है. युवा पत्रकार और मोर चिन्हारी छत्तीसगढ़ी के संयोजक डा वैभव पांडे ने कहा कि छत्तीसगढ़ी को साहित्यकारोंपत्रकारों और कलाकारों ने समृद्ध किया है और आज वह राजभाषा है. छत्तीसगढ़ी छात्र संगठन के अध्यक्ष ऋतुराज साहू ने कहा कि आज छत्तीसगढ़ी राज्य की अस्मिता है इसके लिए समाज को आगे आना होगा. सवाल रोजगार के अलावा हमारी पहचान का भी है.

छंद के छः‘ के संयोजक अरुण कुमार निगम ने कहा कि पुस्तक कालजयी होती है और अनुसंधान के लिए बरसों तक काम आती है. गुलाल वर्मा ने सामयिक विषयों को चुनकर चिंतनपरक निबंध लिखा है. छत्तीसगढ़ी के अध्ययन में यह पुस्तक सहायक है. छत्तीसगढ़ी और हिंदी के साहित्यकार डा परदेशीराम वर्मा ने कहा कि अन्य प्रदेशों की तरह छत्तीसगढ़ के लोग अपनी भाषासंस्कृति और अस्मिता के प्रति उदासीन हैं इसीलिए छत्तीसगढ़ी को सम्मान नहीं मिल पा रहा है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति का पालन करते हुए इसे माध्यम भाषा बनाने में सरकार उदासीन है. छत्तीसगढ़ी को माध्यम भाषा बनाने के लिए संघर्षरत नंदकिशोर शुक्ल ने कहा कि अपनी मातृभाषा पर जब तक हमें भीतर से गर्व नहीं होगातब तक छत्तीसगढ़ी को सम्मान नहीं मिलेगा. मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करना बालक का मौलिक अधिकार है और प्रधानमंत्री भी यही संदेश देते हैं. संगोष्ठी में बंशीलाल कुर्रेडा सोनाली चक्रवर्तीभारती नेल्सनखुशबू वर्मादिनेश चौहानरत्ना पांडेयशकुंतला तरारस्वामी चित्रानंदअरविंद मिश्राछत्तीसगढ़ी छात्र संगठन के सदस्य और साहित्यकार उपस्थित थे. राजाराम रसिक ने आभार व्यक्त किया.