कोलकाता: भारतीय विद्या मंदिर तथा भारतीय संस्कृति संसद के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय ज्ञान परम्परा पर केन्द्रित व्याख्यानमाला के अंतर्गत न्याय दर्शन पर एक विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन किया गया. इस अवसर पर पुणे विश्वविद्यालय के संस्कृत उन्नत अध्ययन केंद्र के पूर्व निदेशक तथा जानेमाने भारतविद प्रो वशिष्ठ नारायण झा ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत में दार्शनिक विमर्श की समृद्ध परम्परा रही है. विचारशीलता और चिंतनशीलता भारतीय ज्ञान परम्परा का आधार है. बिना निरीक्षण-परीक्षण के यहां कुछ भी स्वीकार नहीं किया जाता. इसीलिए भारतीय दर्शन में नौ भिन्न-भिन्न प्रणालियां हैं.
न्याय और वैशेषिक दर्शन की सुबोध व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि न्याय दर्शन ने भिन्न-भिन्न विश्व-दृष्टि वाले विचारकों के मध्य संवाद के लिए तथा सत्य तक पहुंचने के लिए शास्त्रार्थ का एक फ्रेमवर्क विकसित किया. सटीक संवाद द्वारा सत्य की प्राप्ति के लिए एक विशिष्ट भाषा विकसित की गई जिसे नव्य न्याय भाषा कहा गया .कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भारतीय विद्या मंदिर के अध्यक्ष डा बिट्ठलदास मूंधड़ा ने कहा कि प्रोफेसर झा प्राचीन भारतीय ज्ञान-परम्परा के एक गम्भीर अध्येता और सुप्रतिष्ठित आचार्य हैं और न्याय दर्शन पर उनके विद्वतापूर्ण पर अत्यंत सुबोध व्याख्यान से वे बहुत समृद्ध हुए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा के प्रचार-प्रसार और संवर्धन के कार्य के लिए भारतीय विद्या मंदिर और भारतीय संस्कृति संसद प्रतिबद्ध हैं किंतु नई पीढ़ी को जोड़े बिना यह कार्य सम्भव नहीं. स्वागत उद्बोधन और विषय प्रस्तावना प्रियंकर पालीवाल ने दिया.