लखनऊ: अभिव्यक्ति के उत्सव ‘संवादी‘ के तीसरे दिन के चौथे सत्र ‘कथा भूमि की चुनौतियां‘ में वरिष्ठ साहित्यकार शैलेंद्र सागर, वरिष्ठ कथाकार राजेंद्र राव, लेखक भगवंत अनमोल से संचालक रविनंदन सिंह ने चर्चा की. शैलेंद्र सागर ने कहा, ‘साहित्य को संवेदना से लिखा जाता है. गूगल पर बहुत कुछ उपलब्ध है, लेकिन क्या उसमें संवेदना है?’ सागर ने नए तरह के लेखन पर भी बात की और एक पत्रिका का उदाहरण देते हुए कहा कि मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है कि उसमें प्रकाशित 60 प्रतिशत कहानियां मेरी समझ में नहीं आईं. अगर मैं इतना नहीं समझ पाया तो पाठक 90 प्रतिशत नहीं समझ पाया होगा. इसलिए आवश्यक है कि हम ऐसा लिखें जो पाठक समझे. सागर ने यह भी स्वीकारा कि साहित्य तकनीक से नहीं चलता, लेकिन इस संभावना को खारिज भी नहीं किया कि एआई का साहित्य में भविष्य नहीं है. उन्होंने कहा सकारात्मक पहलू से देखें तो एआई मददगार है. राजेंद्र राव ने कहा, साहित्य पढ़ना कम हो जाएगा तो कल्पना का विस्तार भी नहीं हो पाएगा. पहले और अब में बहुत अंतर है. तब जाए बगैर दृश्य उपलब्ध नहीं होते थे, आज गूगल पर कहीं के भी सुंदर दृश्यों को देख सकते हैं, लेकिन जब वहां जाएंगे तो अंतर मिलेगा.
राव ने यथार्थ के दो रूपों आभासी और जीवंत से परिचय कराया. आभासी यथार्थ इतना मोहक और इंद्रधनुषीय है कि हम उसी को अपनाना चाहते हैं और जीवंत यथार्थ से कट जाते हैं. उन्होंने हिंदी के पाठकों की घटती संख्या पर चिंता जताते हुए कहा कि देश में 50-60 करोड़ हिंदी पढ़ने वाले लोग हैं, लेकिन आज हिंदी पत्रिका की 50 हजार प्रतियां छापने की सोच भी नहीं सकते. जबकि मलयालम की मनोरमा पत्रिका की 2.5 लाख प्रतियां साप्ताहिक छपती हैं. चुनौती वहां नहीं, यहां है. जहां चुनौती नहीं होगी वहां संभावना भी नहीं होगी. रविनंदन सिंह ने कथा कहने के बदलते तरीके पर प्रकाश डाला और प्रश्न किया कि आशंका कहानी पर होनी चाहिए या नए टूल्स-टेक्नोलाजी पर? उत्तर में भगवंत अनमोल ने कहा कि नई भाषा पाठक को कुछ नई चीज देती है. हमें वो विषय लेना चाहिए जिस पर कम बात हुई हो, जिस पर पाठक जानना चाहता हो. दर्शक दीर्घा से संयुक्त शिक्षा निदेशक प्रदीप कुमार ने प्रेमचंद की कफन जैसी परंपरा को जिंदा करने के लिए पाठक व लेखक की जिम्मेदारी जाननी चाही तो राजेंद्र राव ने गेंद उनके ही पाले में डाल दी और कहा कि यह आपके के ऊपर है. लेखक सब तरह का लिख रहा है आप क्या पढ़ेंगे, यह खुद तय करें.