जयपुर: जयपुर के केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में सहायक निदेशक डा राजेंद्र कुमार शर्मा ने सिंगापुर में हुई इंटरनेशनल कांफ्रेंस में वैदिक और पौराणिक ग्रंथों में वर्णित पर्यावरण संरक्षण पर व्याख्यान दिया. सिंगापुर मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी में मेगाफोर्ट, अरबिंदो योग एंड नॉलेज फाउंडेशन और सेंट्रल संस्कृत यूनिवर्सिटी द्वारा आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में डा शर्मा ने मौजूदा पारिस्थितिकी तंत्र में जैविक घटकों के विकास के माध्यम से भारतीय संस्कृति के पर्यावरण संरक्षण में योगदान को प्रस्तुत किया. उन्होंने नैतिक दायित्वों से पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए वैदिक दिनचर्या की वैज्ञानिकता को प्रस्तुत किया.

वैदिक निंबार्क दर्शन द्वारा पर्यावरण की शुद्धि और प्रदूषण के निस्तारण में आधुनिक दृष्टिकोण की प्रस्तुति दी. याद रहे कि निंबार्क के अनुसार अस्तित्व की तीन श्रेणियां हैं. ईश्वर यानी दिव्य अस्तित्व; जीव यानी व्यक्तिगत आत्मा; और अचित्त यानी निर्जीव पदार्थ. चित्त और अचित ईश्वर से भिन्न हैं, इस अर्थ में कि उनमें गुण और क्षमताएं हैं, जो ईश्वर से भिन्न हैं. ईश्वर स्वतंत्र है और स्वयं अस्तित्व में है, जबकि चित और अचित उस पर निर्भर होकर अस्तित्व में हैं. अंतर का अर्थ है एक प्रकार का अस्तित्व जो अलग है लेकिन आश्रित है; जबकि अभेद का अर्थ है अलग अस्तित्व की असंभवता. डा शर्मा की इस उपलब्धि पर केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के निदेशक डा सुदेश शर्मा एवं शिक्षकों व छात्रों ने जयपुर पहुंचने पर उनका अभिनंदन किया.