मुजफ्फरपुरः भारतीय संस्कृति के महान चिंतक व विश्व मानवतावाद के समर्थ दार्शनिक कवि रवींद्रनाथ टैगोर और गीत पुरुष आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री अपनी शब्द साधना एवं भाव संपदा के कारण कालजयी रचनाकार हैं. दोनों ने साहित्य की सारी विद्याओं में श्रेष्ठ लेखन किया है. प्रकृति और प्रेम के यथार्थ को अपने मर्म में आत्मसात करके जिस ढंग से व्यक्त किया है. वह अनुपम और अतुलनीय है. ये बातें स्थानीय निराला निकेतन के महावाणी स्मरण में साहित्यकार डॉ संजय पंकज ने कहीं. अध्यक्षता करते हुए शुभ नारायण शुभंकर ने कहा कि विश्व कवि रवींद्रनाथ टैगोर और मनीषी कवि जानकी वल्लभ शास्त्री दोनों ही भारत के रागात्मक प्राण हैं.
विजय शंकर मिश्र ने कहा कि जानकी वल्लभ शास्त्री और रवींद्रनाथ दोनों विश्व मानवतावाद के रचनाकार थे. नरेंद्र मिश्र ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया. देवेंद्र कुमार, श्रवण कुमार, शशिरंजन वर्मा ने राजनीतिक परिदृश्य पर तो प्रवीण कुमार मिश्र ने शिक्षक को केंद्र में रखकर कविता का पाठ किया. शास्त्री जी की सुपुत्री शैलबाला मिश्र ने आचार्य जी की प्रिय रचना गुलशन न रहा गुलचीं न रहा, रह गई कहानी फूलों की…को सुनाया. संचालन विजय शंकर मिश्र व धन्यवाद ज्ञापन मोहन प्रसाद ने किया. याद रहे कि देश भर के साहित्य प्रेमी 7 मई को जहां गुरुदेव का जन्मदिन मनाते हैं, वहीं आचार्य शास्त्री को भी उनकी पुण्यतिथि पर नमन करते हैं. विशेष रूप से बिहार के मुजफ्फरपुर में बिना आचार्य शास्त्री की याद के इस दिन कोई आयोजन नहीं होता.