नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गीता प्रेस के 100 वर्ष पूरे होने पर अपनी शुभकामनाएं दीं और ट्वीट कर भारतीय आध्यात्मिक विरासत को देश और दुनिया में ले जाने की इस प्रकाशन की 100 वर्षों की यात्रा को अद्भुत और अविस्मरणीय बताया. याद रहे कि राजस्थान के चूरू के रहने वाले जयदयाल जी गोयंदका ने 1923 में गीता प्रेस की स्थापना की थी. सेठजी के नाम से मशहूर गोयंदका जी गीता-पाठ, प्रवचन में बहुत रुचि लेते थे. व्यापार के सिलसिले में उनका कोलकाता आना-जाना होता रहता था. वहां वह दुकान की गद्दियों में भी सत्संग किया करते थे. धीरे-धीरे सत्संगियों की संख्या इतनी बढ़ गई कि जगह की समस्या खड़ी होने लगी. इस पर उन्होंने कोलकाता में बिड़ला परिवार के एक गोदाम को किराए पर लिया और उसका नाम रखा गोविंद भवन. बताते हैं कि कोलकाता में वणिक प्रेस के संचालक की ने गीता प्रेस की स्थापना को लेकर एक टिप्पणी की, जिसे जयदयाल जी गोयंदका ने ईश्वरीय संदेश माना. गोरखपुर के साहबगंज निवासी सेठ घनश्यामदास और महावीर प्रसाद पोद्दार ने भी मदद की.
गोरखपुर के हिन्दी बाजार में 10 रुपये महीने किराए पर गीता प्रेस की स्थापना हुई. बाद में वर्ष 1926 में वर्तमान गीता प्रेस की जमीन खरीदी गई जो दो लाख वर्ग फुट है. प्रबंधक डॉ लाल मणि त्रिपाठी के अनुसार गीता प्रेस की स्थापना ईश्वरीय प्रेरणा से हुई. यही वजह रही कि धर्म, संस्कृति और परंपरा को समेटे हुए गीता प्रेस ने 100 बंसत देखे, पतझड़ कभी नहीं देखा. गीता प्रेस के लीला चित्र मंदिर में श्रीमद्भागवत गीता के 18 अध्याय दीवारों पर लिखे गए हैं. सैकड़ों देवी-देवताओं के चित्र भी यहां बने हैं. मंदिर का उद्घाटन 29 अप्रैल 1955 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था. मंदिर में पूर्व की तरफ जहां भगवान श्रीकृष्ण के चित्र हैं, वहीं पश्चिम की तरफ भगवान श्रीराम के मनुष्य लीला-चित्र हैं. दक्षिण की तरफ दशावतार से जुड़े चित्र हैं, तो उत्तर की ओर नवदुर्गा समेत अनेक देवियों के चित्र हैं. यहां कई चित्र ऐसे हैं जो 200 साल से भी अधिक पुराने हैं. यह मंदिर परिसर एक अनूठा संग्रहालय जैसा भी है क्योंकि इसमें महात्मा गांधी का पत्र, पहली छपाई मशीन, कॉम्पैक्ट डिस्क पर लिखी गई संपूर्ण गीता भी दर्शकों के लिए रखी गई है.