मुजफ्फरपुर: जन कथाकार प्रेमचंद ने अपने साहित्य सृजन में शोषित-पीड़ित अवाम के दुख-दर्द और उनके सपने को प्रमुखता दी और देश-समाज में व्याप्त पाखंड और अंधविश्वास के जकड़न पर जमकर प्रहार किया था. उनकी हर एक बात आज भी प्रासंगिक है. ये बातें विकल्प के महासचिव साथी बैजू ने कही. वे मालीघाट में बिहार राज्य जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा ‘विकल्प‘ की ओर से प्रेमचंद की 143वीं जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में बोल रहे थे. कार्यालय सचिव पूजा कुमारी द्वारा प्रेमचंद की तस्वीर पर माल्यार्पण और अमन कुमार द्वारा अली सरदार जाफरी के गीत ‘कौन आजाद हुआ किसके माथे से गुलामी की स्याही छूटी‘ गीत से कार्यक्रम की शुरुआत हुई. विकल्प ने इस समारोह में ‘मौजूदा परिस्थितियों में प्रेमचंद का साहित्य‘ विषय पर संगोष्ठी आयोजित की, जिसमें विभिन्न वर्ग के लोग शामिल हुए. प्रोफेसर कृष्ण नंदन सिंह ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य इंसानी जीवन में मशाल के समान है. वह लंबे समय तक भारतीय समाज को दिशा दिखाता रहेगा.
इस अवसर पर शायर महफूज अहमद आरिफ ने कहा कि प्रेमचंद हिंदी एवं उर्दू के अजीम रचनाकार थे, जिन्होंने अपनी रचना में किसान-मजदूर की, उसके हक, अधिकार और शोषण के साथ न्याय की बात तो की ही, समाज में भाईचारा स्थापित करने के लिए ‘पंच-परमेश्वर‘ और ‘कर्बला‘ जैसी कहानियों की रचना की. प्रोफेसर मनोज कुमार ने कहा कि प्रेमचंद ने ‘महाजनी सभ्यता‘ जैसे निबंध लिखकर समाज में बैठे महाजनों और सूदखोरों की निर्दयता और कुचक्रों को जिस तरह उद्घाटित किया, वह आंखें खोलने वाला था. चन्द्रमोहन ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य जीवन संघर्ष का मार्गदर्शन कराता है. इस मौके पर उदय चौधरी, भूपनारायण सिंह, पुष्पा गुप्ता, हरिनारायण राम, अखिलेश कुमार, धीरेन्द्र धीरु, रुपा कुमारी, पूजा कुमारी, पंकज कर्ण, उमेश राज, कुमार विरल, महेश ठाकुर चकोर अली अहमद मंजर, मोहम्मद आलम सिद्दीकी, आनंद कुमार, विभाकर विमल, रामबाबू साह, चन्द्रभूषण तिवारी एवं समृद्धि विश्वास आदि उपस्थित थे.