नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी ने युवा साहिती के अंतर्गत बहुभाषी कविता-पाठ कार्यक्रम आयोजित किया. कार्यक्रम में हिंदी और मराठी की प्रख्यात लेखिका मालती जोशी को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रतिष्ठित कश्मीरी लेखक आरके भट्ट ने की. संचालन अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया. कार्यक्रम में द्विभाषी कवि प्रतीति भट्टाचार्य, हिंदी के अदनान कफ़ील दरवेश एवं उर्दू के शाहरुख अबीर ने कविताएं प्रस्तुत कीं. सर्वप्रथम प्रतीति भट्टाचार्य ने अपनी अंग्रेजी एवं हिंदी कविताएं प्रस्तुत कीं. उनकी पहली कविता उनके दिल्ली से संबंधित अनुभवों को लेकर थीं जिसमें दिल्ली से हर रंग के रिश्तों को प्रस्तुत किया गया था. उन्होंने अन्य छोटी-छोटी कविताएं भी प्रस्तुत कीं जिनमें जिंदगी को लेकर अलग-अलग सटीक नजरिए थे.
अदनान कफ़ील दरवेश ने अपनी हिंदी कविताएं प्रस्तुत कीं जिनके शीर्षक थे ‘पिता के जूते‘, ‘सबसे जरूरी बात‘, ‘मुल्क‘, ‘नीली बयाज‘, ‘इल्तजा‘, ‘मैं मिलूंगा तुमसे‘ एवं ‘कुछ देर में‘. उनकी कविताओं में आसपास के परिवेश की बारीकियों को बहुत पैनी दृष्टि से परखा गया था और उन्हें अनेक रूपकों में प्रस्तुत किया गया था. उनकी कविताओं में वर्तमान के साथ ही भविष्य की चिंताएं भी समाहित थीं. शाहरुख़ अबीर ने अपनी कुछ उर्दू ग़जलें और नज्में प्रस्तुत कीं. एक ग़जल के शब्द थे, ‘मुझको क़िस्तों में कुछ भी नहीं गवारा करना”. उनकी नज्मों के शीर्षक थे ‘हमरंग‘ तथा ‘मैं और बेताल‘. इन नज्मों में उन्होंने प्रकृति की खोती हुई चमक को तो परिभाषित किया ही बल्कि उसकी सुरक्षा के लिए हर किसी की जिम्मेदारी भी निरूपित की. अंत में अध्यक्षता कर रहे आरके भट्ट ने युवाओं को उनके अच्छे लेखन के लिए बधाई देते हुए कहा कि इन सभी रचनाकारों की रचनाओं में उम्मीद और उत्साह दोनों ही हैं जो लेखन के लिए बेहद जरूरी हैं. उन्होंने नई पीढ़ी को तकनीक के जाल में न फंसने की सलाह देते हुए कहा कि उन्हें अपनी सृजनात्मकता को जिंदा रखना जरूरी है.