नई दिल्लीः जयपुर के व्यंग्यकार प्रभात गोस्वामी के नए व्यंग्य संग्रह ‘पुस्तक मेले में खोई भाषा’ का लोकार्पण उनकी अनुपस्थिति में हुआ. इस अवसर पर जानेमाने व्यंग्यकार और व्यंग्य यात्रा के संपादक डॉ प्रेम जनमेजय ने कहा कि प्रभात गोस्वामी की भाषा चमत्कृत करती है. उन्होंने बेहद कम समय में अपनी जमीन को तैयार कर लिया है और कमेंट्री की भांति चौके- छक्के लगाने की तरह व्यंग्य की भूमि भी तैयार कर ली है. उनकी रचनाएं बताती हैं कि वह काफी आगे तक जाएंगे. कार्यक्रम में उपस्थित प्रो राजेश कुमार का कहना था कि व्यंग्य की भाषा को समझते और महसूस करने वाले प्रभात बेहद सूक्ष्म से सूक्ष्म विषयों को आधार बना कर भी व्यंग्य लिखा, यही वजह है कि उन्होंने पाठकों की मानसिकता और उनके लगाव को समझते हुए सधे कदमों से उन्हें अर्जित करने का सशक्त प्रयास किया है.
व्यंग्यकार और राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत के सहायक संपादक डॉ लालित्य ललित ने कहा कि प्रभात गोस्वामी की भाषा अचानक से बल्ले पर आती हुई वह गेंद है, जिसे साधने में उनकी वर्षों की मेहनत साफ नजर आती है. वे एक ही बल्ले से कहीं सुदूर की यात्रा करने में सक्षम हैं. उन्होंने वर्तमान में व्यंग्य की स्थिति पर संतोष जताया और कहा कि निश्चित ही आजकल के व्यंग्यकार विसंगतियों को पहचानते हुए आगे बढ़ते हुए नजर आ रहे हैं, जो व्यंग्य के लिए शुभ संकेत है. इंडिया नेट बुक्स के प्रकाशक डॉ संजीव कुमार ने कहा कि प्रभात गोस्वामी राजस्थान के एक बेजोड़ व्यंग्यकार हैं, जो एक साथ कई भूमिकाओं में नजर आते हैं. यह व्यंग्य संग्रह भी उनके पाठकों को पसंद आएगा. उन्हें बधाई और शुभकामनाएं. कार्यक्रम में डॉ मनोरमा कुमार, कथाकार राजेश्वरी मंडोरा, सूर्योदय सहित अनेक आत्मीय जन उपस्थित थे.