गुवाहाटी: “जिस समय पश्चिमी सभ्यता के देशों में लोगों के मुंह की भाषा नहीं बनती थीउस समय भारत की पवित्र भूमि में साहित्य का सृजन किया जाता था.” यह कहना है नागालैंड विश्वविद्यालय के चांसलर डा समुद्र गुप्त कश्यप का. वे प्रागज्योतिषपुर लिटरेरी फेस्टिवल के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि पिछले 700-800 वर्षों में बख्तियार खिलजी के असम आक्रमणआहोमों के असम आगमनआपदाओंविद्रोहोंयुद्धों के बीच विभिन्न अनुभवों के साथ असम पिछले 700-800 वर्षों में अनुभवों से भरा हुआ है. डा कश्यप ने युवा पीढ़ी से अपील की है कि वे ऐसे अनुभवों पर आधारित ग्रंथों के अध्ययन से मन को प्रबुद्ध करें. शंकरदेव एजुकेशन एंड रिसर्च ट्रस्ट द्वारा आयोजित इस तीन दिवसीय महोत्सव के दौरान अनेक आयोजन हुए और इसने पूर्वोत्तर के साहित्यिक प्रशंसकों के बीच अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी. समापन सत्र में नाहेंद्र पाडुंग और नयनज्योति शर्मा को प्रागज्योतिषपुर साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस अवसर पर और दिगंत बिस्व सरमा ने भाग लिया. प्रागज्योतिषपुर साहित्य महोत्सव की आयोजन समिति के अध्यक्ष फणीन्द्र कुमार देबचौधरी ने जहां पाडुंग को पुरस्कार प्रदान किया वहीं कार्यकारी अध्यक्ष सौम्यदीप दत्ता ने नयनज्योति शर्मा को यह पुरस्कार दिया. स्वीकृति वक्तव्य में नाहेंद्र पाडुंग ने अपनी साहित्यिक यात्रा को याद करते हुए कहा कि मिसिंग मेरी मातृभाषा हैअसमिया धातृभाषा.

असमिया में कविता लिखने के बावजूद समाज में लापता कवि के रूप में पहचाने जाने से इनकार करने वाले सुकवि पाडुंग ने स्पष्ट किया कि वे एक असमिया कवि हैंजो असमिया भाषा में लिखते हैं. हालांकि उन्होंने अफसोस जताया कि भले ही राज्य के आदिवासी लेखकों ने असमिया भाषा में साहित्य लिखा हैलेकिन किसी भी असमिया भाषी लेखक ने अब तक किसी भी आदिवासी भाषा में साहित्य नहीं लिखा है. शर्मा ने पुरस्कार ग्रहण करते हुए कहा कि इसने उन्हें पूरे मन से साहित्यिक सृजन का ध्यान रखने के लिए प्रेरित किया है. निबंधकार दिगंत बिस्व सरमा ने पश्चिम में रचित साहित्य के युगों पर चर्चा की और उत्तर-आधुनिक युग की अवधारणा की कड़े शब्दों में आलोचना की. उन्होंने अफसोस जताया कि इस तरह की पाश्चात्य सोच ने भारतीय संस्कृति को सनातनी मूल्यों से दूर कर दिया है. यह देखते हुए कि उत्तर आधुनिक अवधारणा ने नव-आसुरिक संस्कृति को जन्म दिया. उन्होंने कहा कि उत्तर आधुनिकतावाद पश्चिम का एक भयानक आविष्कार था. ऐसे पाश्चात्य विचारों के विपरीत उन्होंने साहित्य की उस विधा को अपनाने का आह्वान किया जिसे सनातनी संस्कृति के आधार वेद-उपनिषद-रामायण-महाभारत ने स्पष्ट किया है. इस संबंध मेंउन्होंने दोहराया कि प्रागज्योतिषपुर साहित्य महोत्सवजो जड़ों की खोज में आदर्श वाक्य के साथ शुरू हुआ हैजो महत्त्वपूर्ण है. विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ संपन्न हुए प्रागज्योतिषपुर लिटरेरी फेस्टिवल की सफलता से साहित्य प्रेमियों में काफी उम्मीद जगी है. साहित्यिक कार्यक्रमों में श्रोताओं की उपस्थिति कम होने की प्रचलित धारणा के विपरीत प्रागज्योतिषपुर साहित्य समारोह के तीनों दिनों में कार्यक्रम में साहित्यिक प्रशंसकों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही.