नई दिल्ली: उत्थान फाउंडेशन द्वारका ने ‘हिंदी प्रवासी साहित्य में नारी‘ विषय पर आनलाइन एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की, जिसमें कई देशों से लेखक, विद्वान जुड़े और विभिन्न क्षेत्रों और साहित्य में महिलाओं की प्रगति को लेकर विचार प्रकट किए. प्रतिभागियों ने माना कि अब नारी के प्रति समाज के दृष्टिकोण में बड़ा बदलाव देखा जा रहा, यह बदलाव सकारात्मक रहे. अतिथियों ने काव्य पाठ भी किया.आरंभ में अरूणा घवाना ने विषय की भूमिका रखी. भाषाविद, साहित्यकार डा विमलेशकांति वर्मा ने भाषा विज्ञान के परिप्रेक्ष्य को स्पष्ट किया और कहा कि नारीवाद को समझने की आवश्यकता है. यूके से लेखनी संपादक शैल अग्रवाल ने कहा कि नारी खुद सशक्त है. वह कभी हारती नहीं है. कनाडावासी स्नेह ठाकुर ने कहा कि कविताओं के माध्यम से नारी के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन किया. स्वीडन से इंडो-स्कैंडिक संस्थान के उपाध्यक्ष सुरेश पांडे ने मीरा को नारी शक्ति का रूप बताते हुए रोचक काव्य प्रस्तुति की.
यूएसए से विश्वविद्यालय आफ फीजी की प्राध्यापिका रहीं मनीषा रामरक्खा ने महिलाओं के विकास को समग्रता में देखने की बात कही, तो चीन के क्वान्ग्तोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में हिंदी के सहायक प्रोफेसर डा विवेक मणि त्रिपाठी ने कहा कि किसी भी देश के समाज को समझने के लिए उस देश की नारी स्थिति से अंदाजा लगाया जा सकता है. न्यूजीलैंड से मैसी विश्वविद्यालय की निदेशक डा पुष्पा वुड ने नारीवाद के दो स्वरूपों को समझने पर जोर दिया. आस्ट्रेलिया से श्रद्धा दास ने फीजी में महिला हिंदी रचनाकारों पर अपनी बात कही. फीजी से विश्वविद्यालय फीजी में अध्ययनरत भारती देवी ने अपने विचार
व्यक्त किए. मारीशस से हिंदी शिक्षक शंभू धनराज ने कहा कि शिक्षा ही नारी को आगे बढ़ाती है. सूरीनाम से हिंदी अध्यापिका लैला लालाराम और श्रीलंका से डा अनुषा ने सीता पर अपना वक्तव्य रखा. साथ ही व्यावसायिकता के दौर में महिलाओं के प्रति बदलते नजरिए को प्रस्तुत किया.