मनीमाजरा: साहित्य चिंतन चंडीगढ़ की बैठक डॉ अक्षय कुमार की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई. इस मौके पर डॉ सत्यपाल सहगल के नए कविता संग्रह ‘दूसरी किताब’ पर एक परिचर्चा हुई. इस परिचर्चा में डॉ विजय सिंह के कहा कि कवि के अंदर तन्हाई का आलम है. डॉ ललन सिंह ने परिचर्चा का आरंभिक वक्तव्य रखा और कहा कि कविता को दर्शन के आधार पर ही परखा जाना चाहिए. डॉ राजेश जायसवाल ने कहा कि जो हमें आहत कर रहा है, उसका पता होना चाहिए. डॉ जसपाल ने कहा कि कवि के लिए सारा संसार युद्ध भूमि की तरह होता है. कविता निज से परा की तरफ का सफर तय करती है. अस्तित्ववादी कविता में कम्पन की कमी रह जाती है. जो कविता युद्ध नहीं छेड़ती, उसे कौन सी कविता कहेंगे, तय करिए.
परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए अभय सिंह संधू ने कहा कि कविता सारे दायरों से पार जाने की विधा है. अनुवाद भाषा के सीमित दायरों को तोड़ता है. डॉ अरीत कौर ने कहा कि भाषा के चक्करों में फंसकर ज्ञान के दरवाज़े, खिड़कियों के रोशनदान बंद नहीं करने चाहिए. इस परिचर्चा में बिमल शर्मा, सतबीर कौर, कृष्णा गोयल, सतवंती आचार्य, इंदरजीत सिंह भाटिया, रीना बिष्ट, अलका कल्याण, सज्जन सिंह, मोहन लाल राही, लखमिंदर सिंह बाठ, भजनबीर सिंह, जयपाल, गुरचरण सिंह, अमरकांत, अशोक कुमार बत्रा, गुरविंदर सिंह, जय देव बिश्नोई, प्रियंका, गौरवकालड़ा, जसवंत सिंह, हरमेल सिंह, डॉ जगदीश चन्द्र, रीमा, डॉ रविंदरनाथ शर्मा, शाइदा बानो सहित चालीस के करीब साहित्यिक चिंतकों ने भाग लिया. संचालन सरदारा सिंह चीमा के किया.
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