पाकुड़: अगर तुम राधा होते श्याम, मेरी तरह बस आठों पहर तुम, रटते श्याम का नाम. वन-फूल की माला निराली, वन जाती नागन काली, कृष्ण प्रेम की भीख मांगने, तुम, आते इस बृजधाम…’ जैसी अनेकों कालजयी रचनाएं लिखने वाले श्रेष्ठ साहित्यकार काज़ी नज़रुल इस्लाम की 124वीं जयंती के अवसर पर स्थानीय भारत सेवाश्रम संघ के प्रांगण में बंगाली एसोसिएशन पाकुड़ ने एक कार्यक्रम किया. नज़रुल ने बांग्ला कवि के रूप में भारतीय साहित्य, संगीत और दर्शन को प्रभावित किया. उन्हें वर्ष 1960 में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया था. नज़रुल ने लगभग तीन हज़ार गानों की रचना की और अधिकांश को स्वर भी दिया. इनके संगीत को ‘नज़रुल संगीत’ या ‘नज़रुल गीति’ नाम से जाना जाता है.
कार्यक्रम का उद्घाटन एसोसिएशन के सचिव मानिक चंद्र देव, प्रवीर भट्टाचार्य, केके भगत, देव मुखर्जी, दिलीप घोष, संतोष कुमार नाग व पार्थो मुखर्जी ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया. इसके बाद पश्चिम बंगाल के नीमतीता और धुलियान से आए डॉ. शुभेंदु विकाश मंडल, प्रवीर भट्टाचार्य और जुल्फ़िकार अली ने कवि नजरूल इस्लाम के जीवन के कई अहम प्रसंगों को याद किया. समारोह में नृत्य व गीत की भी प्रस्तुति की गई. अन्नेसा दे, शर्मिष्ठा साहा, खेया साहा, वृष्टि दे, कोयल भास्कर एंड पार्टी ग्रुप ने अपने पारंपरिक बंगाली नृत्य से सबो का मन मोह लिया. वहीं संगीत में डोलन दत्ता, हरे रवि दास, अर्पिता गांगुली, रूद्र देब गांगुली, राधेश्याम दास, सर्वेश्वर साधु, संतोष कुमार नाग व कविता पाठ में सर्वेश्वर साधू, पार्थ मुखर्जी, कमला गांगुली ने दमदार प्रस्तुति दी. मौके पर सोमनाथ कर, विश्वनाथ दत्ता, देव मुखर्जी, कालीचरण घोष, अन्नू दे, रत्ना दे, प्रसन्न मुखर्जी व अन्य मौजूद थे.