बीकानेर: स्थानीय रानी बाजार स्थित मरुधर पैलेस में ‘भारतीय साहित्य, संस्कृति और मीडिया‘ विषय पर परिचर्चा का आयोजन हुआ, जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में आलोचक डा उमाकांत गुप्ता ने अपने विचार व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य मानवता का पक्षधर और समग्रता में मूल्यांकन का हामी है. विचारों की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति और मौलिकता नवीनता का गायक रहा है. भारतीय संस्कृति मूल्य निरपेक्ष जीवन पद्धति का पर्याय रही है तथा स्वंय को सुधारने पर बल देती है. आज हम पापुलर संस्कृति का उत्पाद होकर रह गए हैं. चुनौतियों को मनौतियों का रूप देकर रह गए है. यह चिन्ता का कारक है. हम अपनी संवेदना को जगाकर अपनी जड़ों से जुड़कर मानवता का हित रचेंगे तो बचेंगे. संयोजक पत्रकार-साहित्यकार अनिल सक्सेना ने कहा कि हिंदी पत्रकारिता की मूल आत्मा साहित्यिकता- सांस्कृतिकता ही है. उन्होंने कहा कि प्रदेश भर में राजस्थान के साहित्यिक आंदोलन शृंखला के तहत ये कार्यक्रम किये जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में साहित्य और मीडिया का समन्वय स्थापित होना जरूरी है, क्योंकि आधुनिक युग में साहित्य और संस्कृति का स्थान घटता जा रहा है. सोशल मीडिया बेलगाम है.
मुख्य अतिथि के रूप में राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के कोषाध्यक्ष कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि भारतीय साहित्य- दर्शन पर आधारित है और संस्कृति हमारी परंपराओं को जीवित रखती है. उन्होंने कहा कि बदलते दौर में मीडिया बेजा तरीके से बदल रहा है. जिससे हमारी संस्कृति और दर्शन पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है. जोशी ने कहा कि दुनिया भर में भारतीय दर्शन और संस्कृति की पहचान सदियों से रही है. व्यंग्यकार-संपादक डा अजय जोशी ने कहा कि संस्कृति, साहित्य एवं मीडिया समाज के अभिन्न अंग हैं. इनका समाज के प्रति महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व है. आज के दौर में मीडिया मुख्य रूप से सोशल मीडिया इस दायित्व से विमुख है. प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में साहित्य और संस्कृति का स्थान घटता जा रहा है, जबकि सोशल मीडिया बेलगाम है. विशिष्ट अतिथि राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि साहित्य समाज को जोड़ता है, संस्कृति से समाज आगे बढ़ता है और मीडिया लोकतंत्र का प्राण है. तीनों के मिलने से एक सुसंस्कृत देश-समाज का निर्माण होता है. डा नासिर जैदी ने कहा साहित्य-संस्कृति से देश विकसित होता है. हमारे संस्कारों ने हमें धर्म, संस्कृति को पोषित पल्लवित करने का ज्ञान दिया है.
परिचर्चा में डा रेणुका व्यास ‘नीलम‘ ने कहा कि साहित्य में संवेदनात्मक अन्वेषण को मीडिया को रेखांकित करना चाहिए. संगीता सेठी ने कहा कि भारतीय साहित्य और संस्कृति के मूल्य बनाये रखने में मीडिया का योगदान है. परिचर्चा में अशोक माथुर, दीपक गोस्वामी, हेम शर्मा, जुगल पुरोहित, रवि पुरोहित, डा बसंती हर्ष, शंशाक शेखर जोशी, असद अली असद, पूर्णिमा मित्रा, मुकेश व्यास, अनिल व्यास, मोहनलाल जागिंड, भवानी जोशी, श्याम मारु, नीरज जोशी, विपल्व व्यास आदि ने भी अपने विचार रखे. स्वागत उद्बोधन डा नासिर जैदी ने दिया, संचालन मोनिका गौड़, सरस्वती वंदना ज्योति वधवा रंजना ने किया. इस अवसर पर मुहम्मद रफ़ीक़ पठान, घनश्याम सिंह, मधुरिमा सिंह, नीरज जोशी, असिस्टेंट प्रोफेसर डा सोफ़िया ज़ैदी, डा जगदीश बारहठ, शकूर बीकाणवी, वरिष्ठ रंगकर्मी बी.एल नवीन, कृष्ण लाल बिश्नोई, एच. एस. गिल, जगदीश रतनू, डा बसन्ती हर्ष, सुधा आचार्य, एम. एल. जांगीड़, शिव शंकर शर्मा, अनिल व्यास, डा संगीता सेठी, हेम शर्मा, दिनेश सक्सेना, प्रेस क्लब अध्यक्ष भवानी जोशी, वरिष्ठ पत्रकार श्याम मारू, रवि पुरोहित, मुकेश व्यास, चन्द्र शेखर जोशी, ज्योति स्वामी, रवि माथुर, जुगल किशोर पुरोहित, शशांक शेखर जोशी, विक्रम जागरवाल, धीरज जोशी, महेन्द्र मेहरा, शंकर सारस्वत, अंजुमन आरा, डा एलके कपिल, सैयद रईस अली सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार और नगर के प्रबुद्धजन उपस्थित रहे.