नई दिल्ली: भारतीय संस्कृति के प्रति गौरव की भावना हमारी राष्ट्रीय चेतना का आधार है. अपने देश की समृद्ध संस्कृति का अहसास होने पर गर्व की भावना जागृत होती है. हमारी सांस्कृतिक विरासत संस्कृत भाषा में संरक्षित है. ऐसे में संस्कृत भाषा में उपलब्ध सांस्कृतिक जागरूकता का प्रसार करना राष्ट्र की सेवा है.” यह बात राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कही. राष्ट्रपति ने कहा कि संस्कृत भाषा ने हमारी विशाल भूमि की विविधता को एकता के सूत्र में पिरोया है. कई भारतीय भाषाएं संस्कृत की शब्दावली से मजबूत हुई हैं और वे भाषाएं विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में फल-फूल रही हैं. यह न केवल ईश्वर की भाषा है बल्कि यह जन-जन की भी भाषा है. राष्ट्रपति ने कहा कि जिस भाषा में गार्गी, मैत्रेयी, अपाला और लोपामुद्रा जैसी महिला विद्वानों ने अमर योगदान दिया है, उस भाषा में महिलाओं की भागीदारी अधिक से अधिक होनी चाहिए. उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि आज के दीक्षांत समारोह में स्वर्ण पदक विजेताओं में बॉयज और गलर्स की संख्या लगभग बराबर है. उन्होंने महिला सशक्तिकरण के प्रयासों के लिए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की सराहना की.
राष्ट्रपति ने कहा कि संस्कृत भाषा में अध्यात्म और नैतिकता पर अनगिनत उत्कृष्ट रचनाएं उपलब्ध हैं. प्राचीन काल में आचार्यों द्वारा लोगों को दिया गया ज्ञान आज भी प्रासंगिक है और सदैव उपयोगी रहेगा. उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि उनमें सत्य बोलने, सदाचार पूर्ण व्यवहार करने, स्वाध्याय में लापरवाही न बरतने, कर्तव्य से विमुख न होने और शुभ कार्यों के प्रति सचेत रहने का संकल्प होना चाहिए. ऐसा करने से वे अपनी प्रतिभा के साथ न्याय कर सकेंगे और अपने कर्तव्यों का पालन करने में सफल होंगे. इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि संस्कृत न केवल परंपरा की भाषा है बल्कि विकास एवं पहचान की भाषा है. उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृत कई भाषाओं की उत्पत्ति का मूल है. ऐसे में सरकार संस्कृत भाषा और शिक्षा को सहयोग देने के लिए प्रतिबद्ध है. श्री प्रधान ने कहा कि एनईपी के माध्यम से सरकार संस्कृत, वेद और भारतीय ज्ञान परंपरा को 21वीं सदी की आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ रही है. उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान केवल प्राचीन काल तक ही सीमित नहीं है बल्कि आधुनिक काल में भी प्रासंगिक है. प्रधान ने कहा कि दुनिया भर के लोगों तक भारतीय दर्शन और ज्ञान को पहुंचाने के लिए इसे अधिक से अधिक भाषाओं में उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाना चाहिए.