पुणे: “भारतीय समस्याओं के लिए भारतीय समाधान एवं भारतीय नवाचारों के लिए भारतीय डेटाक्योंकि हमारा स्पेक्ट्रम और यहां तक कि हमारा ह्यूमन फेनोटाइप भी बाकी दुनिया से भिन्न है.” यह बात केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डा जितेंद्र सिंह ने यहां एमआईटी-एडीटी विश्वविद्यालय में आयोजित विज्ञान भारती के छठे राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कही. मंत्री ने सम्मेलन के साथ अपने जुड़ाव को याद किया और बताया कि उन्होंने आज तक विज्ञान भारती के सभी सम्मेलनों में भाग लिया है. उन्होंने इसे स्वदेशी भावना के साथ स्वदेशी विज्ञान के लिए एक बुनियादी आंदोलन बतायाजो वैज्ञानिक दृष्टिकोण और भारतीय दृष्टिकोण का आदर्श संयोजन प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा है. केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ने वर्ष 1980 के दशक से प्रारंभ की गई विज्ञान भारती के बारे में बताया और कहा कि जो लोग विज्ञान के लिए प्रतिबद्ध हैंवे इसके साथ जुड़ गए. उन्होंने बताया कि वर्ष 2007 में विज्ञान भारती ने ‘नेहरू पुरस्कार‘ जीता थाजिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह ने प्रदान किया था और यह विज्ञान के क्षेत्र में इसके योगदान का प्रमाण हैजो किसी भी राजनीतिक संबद्धता से उच्चतर स्थान पर है.

डा जितेंद्र सिंहजो स्वयं एक प्रसिद्ध मधुमेह रोग विशेषज्ञ हैंने कहा कि हमारे देश में मोटापाआंत का मोटापा प्रबल रूप से हैजिसे हृदय रोगउच्च रक्तचाप जैसी मेटाबालिक संबंधित बीमारियों के लिए एक जोखिम कारक माना जाता हैअतः हमारे पास स्वास्थ्य पर एक अलग डेटा होना चाहिए. उन्होंने कहा कि इंडियन फेनोटाइप अलग हैहमारा डीएनए बाकी दुनिया से भिन्न हैइसलिए भारत में कुछ बीमारियां प्रबल रूप से होती हैं. इन बीमारियों से लड़ने के लिए हमें एक एकीकृत और समग्र दृष्टिकोण एवं हमारे पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक चिकित्सा के संयोजन की आवश्यकता है. पारंपरिक ज्ञान हमारी विशिष्ट संपदा है. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने दोनों क्षेत्रों में उत्कृष्ट लाभ प्राप्त करने के लिए ‘पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी‘ की शुरुआत की है. उन्होंने यह भी बताया किया कि प्राच्य चिकित्सा के प्रति पूर्वाग्रह रखने वाले लोगों ने कोविड-काल में अपनी विचारधारा में परिवर्तन किया. उन्होंने साझा किया कि महामारी के समय विदेशी उन्नत देशों के लोग किसी भी आयुर्वेदिक उपाय या इलाज के लिए उनसे संर्पक करते थे. डा जितेंद्र सिंह ने कहा, “विज्ञान का छात्र होने के नाते हमें प्रमाण के साथ अपनी बात को रखना सिखाया जाता है और भारतीयता में हमारा विश्वास सिर्फ राष्ट्रीय गौरव से नहीं है बल्कि यह ठोस वैज्ञानिक शोध पर आधारित है.” उन्होंने सार्वजनिक-निजी क्षेत्रों को सामूहिक प्रयास से एकीकृत करने और सांस्कृतिक व पूंजी संसाधनों का पूरक होने के लिए प्रेरित किया. इस सम्मेलन में डीआरडीओ के पूर्व अध्यक्ष डा सतीश रेड्डीविज्ञान भारती के पूर्व अध्यक्ष डा विजय भटकरविज्ञान भारती के अध्यक्ष डा शेखर मांडेरामकृष्ण मठपुणे के अध्यक्ष स्वामी श्रीकांतानंद महाराजएमआईटीपुणे के अध्यक्ष प्रो विश्वनाथ कराड भी उपस्थित थे.