नई दिल्लीः दैनिक जागरण ने ‘हिंदी हैं हम‘ के तहत हिंदी दिवस पर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में जागरण ‘संवादी‘ में हिंदी को सुदृढ़ बनाने के लिए जो सत्र आयोजित किए उनमें ‘भारत का भविष्य और साहित्य‘ विषय पर चर्चा करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व उपाध्यक्ष अनिल जोशी ने कहा कि भारतीय भाषाओं को बचाने के लिए हमें दिमागी गुलामी से बाहर निकलना होगा. हाल ही में सनातन को लेकर उठे विवाद पर उन्होंने कहा कि किसी ने सनातम धर्म पर सवाल उठाया और जब उनसे इसका मतलब पूछा गयातो उन्होंने बताया कि सनातन परंपरा का मूल जाति हैजिसे समाप्त किया जाना चाहिएजबकि सनातन की संकल्पना दुनिया में सबसे बेहतर है. जोशी ने जी-20 के भारत में सफल आयोजन को भी याद किया. कथाकारसंपादक और लेखिका क्षमा शर्मा का कहना था कि हिंदी की बात हो रही है तो उन्हें ज्यूरिख की बात याद आ रही हैजब वह अप्रवासन अधिकारी के पास जांच के लिए खड़ी हुईतो उन्होंने दस्तावेज जारी करने के बाद नमस्ते कहा.

शर्मा ने कहा कि अपनी भाषा के स्थान पर उन्होंने हिंदी को प्राथमिकता दी. इसी तरह एक बार पेरिस में मेरी बिंदी देखकर लोगों ने इशारा करते हुए मेरी पहचान तुरंत इंडिया से जोड़ दिया था. उन्होंने कहा कि देश आगे बढ़ेगातो भाषाएं भी आगे बढ़ेंगी और साहित्य भी बढ़ेगा. साहित्य की स्थिति पर अपना स्पष्ट मत रखते हुए उन्होंने कहा कि यह खत्म नहीं हो रहाबस अपना स्वरूप बदल रहा है. साहित्य अकादेमी के सचिव डा के श्रीनिवासराव का कहना था कि हमारे देश में साहित्य की स्थिति बहुत सुदृढ़ है. हिंदी के अतिरिक्त देश की अनेक क्षेत्रीय भाषाओं में भी बेहद समृद्ध साहित्य उपलब्ध है और यह निरंतर रचा जा रहा है. अफसोस यह है कि हम अपने अलिखित साहित्य को अभी भी दुनिया के सामने प्रस्तुत नहीं कर पाए हैं. संतोष की बात है कि अब कई विश्वविद्यालयों में इस पर शोध हो रहा है. कुल मिलाकर इस सत्र के तीनों ही वक्ताओं ने भारत और साहित्य दोनों के ही भविष्य को उज्ज्वल बताया.